भारत के इतिहास का कर्नाटक का विधान सभा चुनाव पहला ऐसा चुनाव था जिसे भाजपा ने खुल्लम खुल्ला पूरी तरह मुस्लिम विरोधी एजेंडे के साथ पूरी ताक़त के साथ लड़ा।
कर्नाटक भाजपा के लिए पूरे दक्षिण भारत की सबसे बड़ी और एकमात्र संघी प्रयोगशाला थी। उत्तर प्रदेश और गुजरात की तरह।
भाजपा ने वहां एक साथ सारे मुस्लिम विरोधी मुद्दे तैयार करने के लिए पिछले 3 साल से पूरी ताकत झोंक दिए थे। इसमें लव जिहाद, हिजाब का विरोध, टीपू सुल्तान के खिलाफ दुष्प्रचार , हलाल फूड का विरोध , मुसलमानों का आरक्षण हटाना , यूसीसी , इत्यादि इत्यादि तमाम मुस्लिम विरोधी अभियान एक साथ पूरी ताक़त के साथ भाजपा और उसके सहयोगी संगठनों द्वारा चलाया गया।
प्रमोद मुतल्लिक से लेकर पड़ोसी प्रदेश तेलंगाना के भाजपा के ज़हरीले विधायक टी राजा सिंह लगातार कर्नाटक में अपनी ज़हरीली मुहिम चलाए हुए थे। कर्नाटक के एक पूर्व मंत्री और बड़े नेता ईश्वरप्पा ने खुलेआम कहा कि उन्हें मुसलमानों का वोट नहीं चाहिए।
देश के गृहमंत्री खुल्लम खुल्ला मुस्लिम विरोधी बयान दे रहे थे कि सत्ता में आए तो मुसलमानों का आरक्षण नहीं होने देंगे।
सबसे चिंताजनक यह रहा कि देश के प्रधानमंत्री पूरे देश के नागरिकों के अभिभावक होते हैं मगर वह भी खुलकर मुसलमानों के खिलाफ आ गये और “बजरंग बली की जय” के साथ वोट देने का आह्वान करने लगे।
उनका आशय यह था कि उन्हें सिर्फ हिंदुओं का ही वोट चाहिए, क्योंकि मुसलमान और ईसाई तो इस जयकारे के साथ वोट देने से रहा।
यह सब एक साथ चलता रहा, संघ के सारे तीर एक साथ कर्नाटक के मुसलमानों के ऊपर चलते रहे और संघ तथा भाजपा के तमाम ज़हरीले तीरों को झेल रहा कर्नाटक का मुसलमान चुपचाप अपने कारोबार में महरूफ रहा ?
वह चुप था , चुपचाप अपने कारोबार में लगा था , चुपचाप अपने बच्चों को पढ़ा रहा था , चुपचाप अपनी तरबियत पर काम कर रहा था।
कर्नाटक का मुसलमान जितना धार्मिक , आपस में एकजुट, आर्थिक रूप से समृद्ध और शैक्षणिक रूप से कहीं अधिक साक्षर हैं उतने ही तरबियत वाले भी हैं।
सोचो अगर कर्नाटक की तरह से अगर पूरे देश के मुसलमान ऐसे बन जाएं तो उनकी आर्थिक सामाजिक और राजनीतिक स्थिति तो सुदृढ़ होगी ही, साथ के साथ राज्य से लेकर केंद्र तक सत्ता में हनक होगी। हमारे ऊपर अत्याचार, शोषण, दुष्प्रचार और हमारी छबि धूमिल करने का कोई साहस नहीं करेगा।
रणनीति देखो और सीखो
संघ पोषित भाजपा और तमाम मुस्लिम विरोधी संगठनों द्वारा उकसाने वाले तमाम ज़हरीले तीरों को झेलता हुआ कर्नाटक का मुसलमान खामोश रहा, कोई प्रतिक्रिया नहीं, कोई धरना प्रदर्शन नहीं, और न ही सड़क पर जुलूस, सिवाय उड़पी की हिजाब गर्ल्स के अलावा।
मुसलमान चुपचाप अपनी ताकत को इकट्ठा करता रहा और मौका मिलते ही उसने लोकतांत्रिक व्यवस्था का लाभ लेकर भाजपा और उसकी सारी ताकत को चकनाचूर कर दिया।
सबसे ज्यादा प्रभाव कहां पड़ा ?
भाजपा को मुसलमानों ने सबसे बड़ा झटका दिया टीपू सुल्तान के ओल्ड मैसूर में, जहां उसने सारी ताक़त इकट्ठा कर के ओल्ड मैसूर की 64 सीटों पर ऐसी स्ट्रेटजिक वोटिंग की कि भाजपा 3 सीट पर सिमट गयी। यहां पर 80% मुसलमानों ने कांग्रेस को मतदान किया।
चुपचाप अपने काम में लगे रहे।
पिछले दिनों मैं बंगलुरु गया था जहां ड्राइफ्रूट्स के एक बड़े शोरूम में गया, मालिक मुसलमान था , दाढ़ी वाला मुसलमान देख कर मैंने उन्हें सलाम किया, फिर उनसे पूछा चुनाव होने वाला है क्या लग रहा है ? उन्होंने कहा प्लीज़ पालिटिक्स पर बात ना करें। इसी तरह से अनेक स्थानों पर, दुकानों और मस्जिदों के बाहर हिंदी बोलने वालों से बात किया सबका एक ही जवाब मिला कि राजनीति पर हम कोई बात नही करना चाहते हैं।
चुनाव के बाद पता चला कि यह रणनीति थी , कर्नाटक का मुसलमान समझ गया था कि इनकी हरकतों पर प्रतिक्रिया देना या सड़क पर विरोध करना विरोधियों को फाएदा पहुंचाना है और अपना नुकसान कराना है।
इसलिए वह चुप रहा और चुपचाप “तालीम तिजारत और तरबियत” पर खामोशी से लगा रहा और मौका मिलते ही अपनी बुद्धिमानी और एकजुता की ताकत से अपने राजनैतिक विरोधी को चित कर दिया।
अब कांग्रेस पर दबाव होगा कि वह मुसलमानों को लेकर किए अपने वादे को पूरा करे।
क्या न करें ?
चुनाव के समय मुसलमानों के वोटो को बाटने के लिए अनेक दलों के द्वारा मुसलमानों को उम्मीदवार बनाया जाता है। यहां तक कि मुसलमानों का मंच से विरोध करने वाली पार्टियां भी मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्रों में मुसलमानो को टिकट देती हैं, जैसा कि अभी रामपुर से आजमखान के बेटे को अयोग्य घोषित होने के बाद खाली सीट पर भाजपा ने एक मुस्लिम को टिकट दे कर मुसलमानों का वोट ले लिया। गौर करने वाली बात यह है कि मुसलमानों के भविष्य को संवारने के लिए जिस आजम खान एक विश्वविद्यालय बनाया, भाजपा ने उस अजीम सखशियत का जीवन तबाह कर दिया।
उसी रामपुर की जनता ने भाजपा के उम्मीदवार को इस लिए वोट दे कर जीता दिया क्यों कि उम्मीदवार मुसलमान था, जबकि सच्चाई यह है कि वह जीत हासिल करके भी मुसलमानों के लिय कुछ नही कर सकता क्योंकि जिस पार्टी से वह चुनाव जीत कर विधान सभा गया है वहां उसकी आवाज को सुनने वाला कोई नहीं है। वह वहां सिर्फ एक गुलाम के जैसा रहेगा।
इस लिए आगे से ऐसे फरेब से बचना होगा। उन धर्म निरपेक्ष पार्टियों को वोट दें जो सरकार बना सकती है और धर्म, जाति, पता, ऊंच, नीच, के नाम पर नही बल्कि समानता, एकता, शिक्षा और स्वास्थ्य के मुद्दे पर कार्य करने वाली हैं।
सावधान!
लड़ाई, झगड़ा, दंगा, फसाद, धरना और प्रदर्शन से आम जनता का कोई फायदा नही होता है। इससे आपको उकसाने वाले, गुमराह करने वाले, भ्रमित करने वाले मौकापरस्तों का फायदा होता है, आम आदमी का हमेशा नुकसान होता है। इतिहास गवाह है लड़ाई, झगड़े और दंगे में सिर्फ आम आदमी का ही नुकसान हुआ है।
धर्म के नाम पर हमे उकसाया जाता है, इससे सावधान और शांत रहने की आवश्यकता है। धार्मिक उन्माद से सामाजिक विकास नहीं विनाश होता है। अफवाहों से खासतौर से बचने की आवश्यकता है। अफवाहों से अक्सर दंगे और फसाद करवाकर समाज को पीछे धकेल दिया जाता है।
राष्ट्र को समर्पित हो कर, शिक्षा हासिल करने के लिए अपना सब कुछ न्यौछावर करते हुए, संगठित हो कर, राजनीति से दूर चुपचाप अपने व्यवसाय और बच्चो की तरबियत पर पूरा फोकस करें और वक्त आने पर अपनें संवैधानिक अधिकारों का उपयोग करते हुए विरोधी को पराजित करें।
लेखक : कमरुद्दीन सिद्दीकी, पत्रकार Email : unitedindialive5@gmail.com












