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Holika Dahan: होलीका दहन का धार्मिक महत्व

Holika Dahan: होलीका दहन का सबसे प्रमुख अर्थ है असत्य, अन्याय और अहंकार का अंत और सत्य, न्याय तथा भक्ति की विजय। यह त्योहार हमें यह सिखाता है कि चाहे परिस्थितियाँ कितनी भी कठिन क्यों न हों, यदि मनुष्य धर्म और सत्य के मार्ग पर चलता है, तो अंततः विजय उसी की होगी।

होलीका दहन की पौराणिक कथा
Holika Dahan: होलीका दहन की परंपरा की उत्पत्ति हिंदू धर्म के ग्रंथों में वर्णित प्रह्लाद, होलीका और हिरण्यकशिपु की कथा से हुई है।

हिरण्यकशिपु और प्रह्लाद की कहानी
Holika Dahan: हिरण्यकशिपु एक असुर राजा था, जिसे ब्रह्माजी से वरदान प्राप्त था कि वह किसी भी देवता, मानव, पशु या अस्त्र-शस्त्र से नहीं मारा जा सकता। इस वरदान के कारण वह अभिमानी और अत्याचारी बन गया और स्वयं को ईश्वर मानने लगा। उसने अपने राज्य में भगवान विष्णु की पूजा पर रोक लगा दी थी।

Holika Dahan: लेकिन उसके पुत्र प्रह्लाद विष्णु का अनन्य भक्त था। वह निरंतर भगवान विष्णु का ध्यान करता था और उनकी भक्ति में लीन रहता था। जब हिरण्यकशिपु ने देखा कि उसका पुत्र उसकी आज्ञा का पालन नहीं कर रहा है, तो उसने उसे मारने के कई प्रयास किए, लेकिन हर बार भगवान विष्णु की कृपा से प्रह्लाद सुरक्षित बच गया।

होलीका दहन की घटना
Holika Dahan: अंततः, हिरण्यकशिपु ने अपनी बहन होलीका को प्रह्लाद को मारने का आदेश दिया। होलीका को यह वरदान प्राप्त था कि वह अग्नि में नहीं जल सकती। उसने योजना बनाई कि वह प्रह्लाद को गोद में लेकर अग्नि में बैठ जाएगी, जिससे प्रह्लाद जलकर भस्म हो जाएगा और वह सुरक्षित बच जाएगी।

लेकिन भगवान विष्णु की कृपा से होलीका का वरदान निष्फल हो गया। वह अग्नि में जलकर भस्म हो गई, जबकि प्रह्लाद को कोई हानि नहीं हुई। इस घटना ने यह सिद्ध किया कि अत्याचार और अधर्म का अंत निश्चित है और भक्ति की सच्ची शक्ति सभी प्रकार के संकटों से बचाने में सक्षम होती है।

इसी उपलक्ष्य में होलीका दहन की परंपरा शुरू हुई, जिसमें लकड़ियों और उपलों से होलीका का प्रतीकात्मक दहन किया जाता है, जो बुराई के अंत और अच्छाई की जीत को दर्शाता है।

होलीका दहन का शुभ मुहूर्त और तिथि
होलीका दहन फाल्गुन मास की पूर्णिमा को किया जाता है। इस दिन चंद्रमा पूर्ण होता है, और यह तिथि अत्यंत शुभ मानी जाती है।

होलीका दहन का शुभ मुहूर्त हिंदू पंचांग के अनुसार भद्रा काल समाप्त होने के बाद रात्रि के समय होता है। शुभ मुहूर्त का निर्धारण पंचांग देखकर किया जाता है, ताकि पूजा विधि सही समय पर की जा सके।

होलीका दहन की पूजा विधि
होलीका दहन से पहले विशेष पूजा-अर्चना की जाती है, जिससे नकारात्मक शक्तियों का नाश हो और जीवन में सुख-समृद्धि बनी रहे।

होलीका दहन की तैयारी
होलिका की संरचना:

एक सार्वजनिक स्थान पर लकड़ियों, उपलों (गोबर के कंडों), सूखी पत्तियों और घास को इकट्ठा कर होलीका का ढांचा बनाया जाता है।
इसके मध्य में एक लंबी लकड़ी लगाई जाती है, जो प्रह्लाद का प्रतीक होती है।
कई स्थानों पर होलीका को कपड़ों और अन्य सजावट से सजाया जाता है।
पूजा सामग्री:

रोली, चावल, फूल, कच्चा सूत, हल्दी, नारियल, गुड़, फल, गेंहू की बालियाँ और जल।
पूजा विधि
होलिका पूजन:

पूजा करने वाले व्यक्ति को स्नान करके शुद्ध वस्त्र धारण करने चाहिए।
पूजा स्थल पर रोली, चावल और फूल चढ़ाए जाते हैं।
भगवान नारायण, प्रह्लाद और होलीका का स्मरण करते हुए जल, हल्दी और गेंहू की बालियाँ अर्पित की जाती हैं।
सूत को होलीका के चारों ओर तीन या सात बार लपेटा जाता है।
अग्नि प्रज्वलन:

शुभ मुहूर्त में अग्नि प्रज्वलित की जाती है।
होलीका दहन के समय लोग परिक्रमा करते हैं और अपनी मनोकामनाएँ व्यक्त करते हैं।
नई फसल की पहली बालियाँ होली की आग में सेंककर प्रसाद के रूप में ग्रहण की जाती हैं।
भस्म तिलक:

होलीका जलने के बाद उसकी राख को तिलक के रूप में लगाया जाता है, जिससे नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है।
होलीका दहन से जुड़ी मान्यताएँ और परंपराएँ
नकारात्मक ऊर्जा का नाश:

ऐसा माना जाता है कि होली की अग्नि में नकारात्मक शक्तियों का अंत होता है और इससे घर-परिवार में सुख-शांति बनी रहती है।
फसल और समृद्धि का प्रतीक:

किसानों के लिए यह पर्व विशेष महत्व रखता है, क्योंकि यह नई फसल के आगमन का संकेत देता है।
होली की आग में गेंहू और चने की बालियाँ सेंकने से फसल अच्छी होने का संकेत मिलता है।
दुश्मनी खत्म करने की परंपरा:

होली का त्योहार प्रेम और सौहार्द का प्रतीक है। इस दिन लोग पुराने गिले-शिकवे भूलकर एक-दूसरे से गले मिलते हैं और रंग खेलते हैं।
निष्कर्ष
होलीका दहन एक महत्वपूर्ण धार्मिक और सांस्कृतिक परंपरा है, जो हमें यह सिखाती है कि सत्य, भक्ति और अच्छाई की हमेशा जीत होती है। यह त्योहार न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह समाज में प्रेम, भाईचारे और सौहार्द की भावना को भी मजबूत करता है।

इस दिन हमें बुराई और अहंकार का त्याग करके सच्चाई, प्रेम और भक्ति को अपनाने का संकल्प लेना चाहिए।

“बुराई का नाश करें, अच्छाई को अपनाएँ – होलीका दहन की शुभकामनाएँ!”


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