Modi Surname Case: नई दिल्ली। राहुल गाँधी को सुप्रीम कोर्ट से बड़ी राहत मिली है। मोदी सरनेम केस में सुप्रीम कोर्ट ने सजा पर रोक लगा दिया है। कोर्ट के इस आदेश के बाद जहाँ कोंग्रेसी खेमे में ख़ुशी का माहौल हैं, वहीं भाजपा को निराशा हाथ लगी है। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के मुताबिक, कोर्ट की टिप्पणी के अलावा ट्रायल जज द्वारा अधिकतम सजा देने का कोई विशेष कारण नहीं बताया गया। यदि सजा एक दिन भी कम होती तो अयोग्यता से संबंधित प्रावधान लागू नहीं होता।
Modi Surname Case: गुजरात हाईकोर्ट ने सजा पर रोक लगाने से किया था मना
कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी को ‘मोदी सरनेम’ टिप्पणी पर आपराधिक मानहानि मामले में सुप्रीम कोर्ट से फौरी राहत मिल गई है। कोर्ट ने शुक्रवार को एक अंतरिम आदेश में कांग्रेस नेता की सजा पर फिलहाल रोक लगा दी। इससे पहले गुजरात हाईकोर्ट ने ‘मोदी उपनाम’ टिप्पणी पर मानहानि मामले में उनकी सजा पर रोक लगाने से इनकार कर दिया था।
कोर्ट ने राहुल गाँधी को दिया नसीहत
Modi Surname Case: मोदी सरनेम केस में सुप्रीम कोर्ट ने राहुल गांधी को बड़ी राहत देते हुए गुजरात हाईकोर्ट के फैसले को रद्द करते हुए सजा पर रोक लगा दी है। अब राहुल गांधी की संसद सदस्यता बहाल होगी। सुप्रीम कोर्ट ने अपील लंबित रहने तक सजा पर रोक लगाई है। कोर्ट ने कहा कि राहुल गांधी को ज़्यादा से ज़्यादा दो साल की सजा दी गई। निचली अदालत ने ये कारण नहीं दिए कि पूरे दो साल की सजा क्यों दी गई। हाईकोर्ट ने भी इस पर पूरी तरह विचार नहीं किया। सुप्रीम कोर्ट ने साथ ही ये भी कहा कि राहुल गांधी को सार्वजनिक जगहों पर इस तरह के भाषण देने से बचना चाहिए।
जज ने क्या सवाल किया ?
एनडीटीवी इण्डिया की खबर के अनुसार राहुल गांधी की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस बी आर गवई, जस्टिस पी एस नरसिम्हा और जस्टिस संजय कुमार की बेंच सुनवाई कर रही थी। सुनवाई के दौरान कोर्ट ने राहुल गाँधी के वकीलों से पूछा कि कितना समय लेंगे। हमने पूरा केस पढ़ा है हम 15-15 मिनट की बहस कर सकते हैं। जस्टिस गवई ने कहा कि अगर आपको सजा पर रोक चाहिए तो असाधारण मामला बनाना होगा।
राहुल गाँधी के वकील ने कहा कि
Modi Surname Case: राहुल गांधी की तरफ से सुप्रीम कोर्ट में वरिष्ठ वकील अभिषक मुन सिंघवी ने पक्ष रखा। उन्होंने सुनवाई के दौरान कहा कि जो सजा दी गई है वो बहुत कठोर है. मौजूदा समय में आपराधिक मानहानि न्यायशास्त्र उल्टा हो गया है। मोदी समुदाय अनाकार, अपरिभाषित समुदाय है। उन्होंने कहा कि याचिकाकर्ता के पास मानहानि का दावा करने का कोई अधिकार नहीं था। ऐसा मामला नहीं है कि कोई व्यक्ति व्यक्तियों के समूह की ओर से शिकायत दर्ज नहीं कर सकता है। लेकिन व्यक्तियों का वह संग्रह एक ‘अच्छी तरह से परिभाषित समूह’ होना चाहिए जो निश्चित और दृढ़ हो और समुदाय के बाकी हिस्सों से अलग किया जा सके। इस तर्क का समर्थन करने के लिए सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों के कई उदाहरण हैं. मोदी कई समुदायों में फैले हुए हैं।
सिंघवी ने सुनवाई के दौरान कहा कि कोई भी आरोप किसी व्यक्ति की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाने वाला नहीं है। जब तक कि यह किसी व्यक्ति की नैतिक या बैद्धिक प्रतिष्ठा कम नहीं करता। ये कोई अपहरण, रेप या हत्या का मामला नहीं है। शायद ही पहले कभी ऐसे मामले में किसी को दो साल की सजा दी गई हो. इस सजा की आड़ उन्हें आठ साल तक चुप कर दिया जाएगा. सिंघवी की इस दलील पर जस्टिस गवई ने कहा कि यहां तक कि हाईकोर्ट जज ने भी नैतिक अधमता के बारे में टिप्पणी की ? इसपर सिंघवी ने कहा कि लोकतंत्र में हमारे पास असहमति का अधिकार है. जिसे हमें ‘शालीन भाषा’ भी कहते हैं। फिर जस्टिस गवई ने कहा कि ट्रायल कोर्ट ने आपराधिक इतिहास की बात की है।
फिर सिंघवी ने कहा कि गैर ज़मानती मामले में जो रेप न हो, समाज के खिलाफ अपराध न हो। जिसमें उच्चतम सजा 2 साल की हो. उस मामले में व्यक्ति को 8 सालों के लिए शांत कर दिया गया है। ये कोई हत्या का मामला नहीं है, न ही ये कोई रेप का मामला है। केरल में सीट के लिए चुनाव की अभी अधिसूचना नहीं हुई है। शायद उन्हें पता है कि वहां जीत की संभावना कम है. इसपर जस्टिस गवई ने कहा कि इसे राजनीकित मुद्दा न बनाएं। आप और जेठमलानी इसे राज्यसभा के लिए बचा कर रखें। इसपर सिंघवी ने कहा कि मैं अपनी टिप्पणी वापस लेता हूं।
सुप्रीम कोर्ट का बड़ा सवाल
किसी संसदीय क्षेत्र का प्रतिनिधित्व न होना क्या सजा पर रोक का कोई आधार नहीं है? कोर्ट ने कहा कि ये सजा सिर्फ एक व्यक्ति को नहीं बल्कि पूरे संसदीय क्षेत्र को प्रभावित कर रही है। अगर कोई संसदीय क्षेत्र किसी सांसद को चुनता है तो क्या वो क्षेत्र बिना उसके सांसद को उपस्थिति का रहना ठीक है ? जब इस तरह के मामले में अधिकतम सजा दो साल दी गई है? जस्टिस गवई ने कहा कि क्या यह एक प्रासंगिक कारक नहीं है कि जो निर्वाचन क्षेत्र किसी व्यक्ति को चुनता है वह गैर-प्रतिनिधित्व वाला हो जाएगा? ट्रायल जज ने अधिकतम 2 साल की सजा दी है. जब आप अधिकतम सज़ा देते हैं तो आप कुछ तर्क देते हैं कि अधिकतम सज़ा क्यों दी जानी चाहिए।
ट्रायल कोर्ट द्वारा कोई फुसफुसाहट नहीं. कोर्ट ने कहा कि आप न केवल एक व्यक्ति के अधिकार का बल्कि पूरे निर्वाचन क्षेत्र के अधिकार को प्रभावित कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि केवल वह सांसद हैं, यह सजा निलंबित करने का आधार नहीं हो सकता, लेकिन क्या उन्होंने दूसरे हिस्से को भी छुआ है? जज ने आगे कहा कि हाईकोर्ट के फैसले को पढ़ना बहुत दिलचस्प है. इस फैसले में बताया गया है कि एक सांसद को कैसे बर्ताव करना चाहिए.
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