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सुप्रीम कोर्ट ने संभल जामा मस्जिद मामले में कार्रवाई पर लगाई रोक,हाईकोर्ट में सुनवाई तक इंतजार का आदेश

सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार (29 नवंबर) को उत्तर प्रदेश के संभल ट्रायल कोर्ट को निर्देश दिया कि वह जामा मस्जिद के खिलाफ चल रहे मुकदमे में तब तक कोई भी कार्रवाई न करे जब तक मस्जिद कमेटी द्वारा दायर याचिका इलाहाबाद हाईकोर्ट में सूचीबद्ध नहीं हो जाती। मस्जिद कमेटी ने अदालत द्वारा आदेशित सर्वेक्षण पर सवाल उठाते हुए इसे चुनौती दी है।

हिंसा की शुरुआत और घटनाक्रम:
यह मामला 24 नवंबर को संभल जिले में हिंसा के बाद चर्चा में आया, जब एक एडवोकेट कमिश्नर की अगुवाई में एक टीम ने स्थानीय अदालत के आदेश पर मुगल काल की जामा मस्जिद का सर्वेक्षण शुरू किया। सर्वेक्षण को लेकर मस्जिद प्रबंधन और स्थानीय लोगों में गहरी नाराजगी थी। प्रदर्शनकारियों ने सर्वेक्षण का विरोध करते हुए सुरक्षाबलों के साथ झड़प की।
हिंसा के दौरान प्रदर्शनकारियों ने पुलिस पर पथराव किया और वाहनों को आग के हवाले कर दिया। जवाब में, पुलिस ने भीड़ को तितर-बितर करने के लिए आंसू गैस और लाठीचार्ज का सहारा लिया। इस झड़प में चार लोगों की मौत हो गई और कई अन्य घायल हुए।

मस्जिद सर्वेक्षण का विरोध और जनहित याचिका:
मस्जिद कमेटी ने सर्वेक्षण को कानूनी प्रक्रिया का उल्लंघन बताया और इसे हाईकोर्ट में चुनौती दी। इसके अलावा, एसोसिएशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ सिविल राइट्स (APCR) ने पुलिस की कार्रवाई और कथित ज्यादतियों की स्वतंत्र जांच की मांग करते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया।

APCR की याचिका में कहा गया है कि पुलिस और राज्य प्रशासन हिंसा को रोकने में विफल रहे और घटना के दौरान अवैध और असंवैधानिक उपाय अपनाए गए। याचिका में राज्य और पुलिस पर मिलीभगत के भी आरोप लगाए गए हैं।

मीडिया रिपोर्ट और प्रशासन की प्रतिक्रिया:
घटना की मीडिया कवरेज के अनुसार, प्रदर्शनकारियों और पुलिस के बीच संघर्ष काफी हिंसक था। प्रदर्शनकारियों द्वारा किए गए पथराव और आगजनी की घटनाओं के बाद पुलिस ने भीड़ को नियंत्रित करने के लिए बल प्रयोग किया। हालांकि, पुलिस और राज्य प्रशासन पर कार्रवाई में जरूरत से ज्यादा सख्ती बरतने के आरोप भी लगे हैं।

सुप्रीम कोर्ट का निर्देश:
मामले की संवेदनशीलता को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट को निर्देश दिया कि जब तक मस्जिद कमेटी द्वारा दायर याचिका हाईकोर्ट में सूचीबद्ध नहीं हो जाती, तब तक वह मामले में आगे कोई भी कार्रवाई न करे। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि मस्जिद कमेटी को अपनी याचिका की जल्द सुनवाई सुनिश्चित करने के लिए हाईकोर्ट में अपील करनी चाहिए।

सामाजिक और कानूनी प्रभाव:
यह मामला एक बार फिर धार्मिक स्थलों पर विवाद और उससे जुड़ी कानूनी प्रक्रियाओं पर सवाल उठाता है।

सांप्रदायिक तनाव: जामा मस्जिद के सर्वेक्षण के आदेश और उसके बाद की हिंसा ने स्थानीय स्तर पर सांप्रदायिक तनाव को बढ़ा दिया है।
पुलिस की भूमिका: पुलिस पर न केवल हिंसा को रोकने में असफल रहने का आरोप है, बल्कि उनके द्वारा अपनाए गए तरीकों को भी अवैध और असंवैधानिक बताया जा रहा है।
कानूनी प्रक्रिया पर सवाल: स्थानीय अदालत के आदेश के तहत किए गए सर्वेक्षण को मस्जिद प्रबंधन ने कानूनी प्रक्रिया का उल्लंघन करार दिया है।
निष्कर्ष:
यह मामला सांप्रदायिक सौहार्द, कानूनी प्रक्रियाओं के निष्पक्ष क्रियान्वयन और नागरिक अधिकारों की रक्षा सुनिश्चित करने की आवश्यकता को रेखांकित करता है। यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि इलाहाबाद हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट इस मामले में क्या दिशा निर्देश देते हैं और इससे संबंधित सामाजिक तनाव को कैसे कम किया जा सकता है।


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कमरुद्दीन सिद्दीकी को पत्रकारिता के क्षेत्र में 25 वर्षों का दीर्घ अनुभव प्राप्त है। वे स्नातक हैं और राजनीतिक व सामाजिक विषयों पर निर्भीक लेखन के लिए जाने जाते हैं। उन्होंने कट्टरपंथ, भ्रष्टाचार और अंधविश्वास के विरुद्ध आजीवन संघर्ष करने का संकल्प लिया है। वे अनेक सामाजिक संगठनों से सक्रिय रूप से जुड़े हुए हैं और समाज में जागरूकता लाने के लिए निरंतर कार्यरत हैं।

 

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