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Bihar News: बिहार में वोटर कार्ड जांच पर सुप्रीम कोर्ट की रोक का असर? नागरिकता पर विवाद के बीच चुनाव आयोग की विशेष मुहिम पर मंडराए सवाल

Bihar News: नई दिल्ली। बिहार में चल रही वोटर कार्ड जांच प्रक्रिया अब एक नए विवाद की ओर बढ़ती नजर आ रही है। राज्य में भारतीय निर्वाचन आयोग (ECI) ने मतदाता सूची को अपडेट करने के लिए विशेष गहन पुनरीक्षण (Special Intensive Revision – SIR) अभियान शुरू किया है, जिसका उद्देश्य पुराने वोटरों की पुष्टि और नए नाम जोड़ने की प्रक्रिया को पारदर्शी बनाना है। लेकिन अब यह प्रक्रिया विवादों में घिरती दिख रही है, क्योंकि इसमें नागरिकता जांच का मुद्दा केंद्र में आ गया है।

Bihar News: ECI आमतौर पर नागरिकता की जांच से दूरी बनाए रखता है। आयोग का मुख्य कार्य यह सुनिश्चित करना होता है कि मतदाता सूची में केवल योग्य भारतीय नागरिकों के नाम शामिल हों। लेकिन अगर किसी व्यक्ति की नागरिकता पर सवाल उठता है, तो यह मामला गृह मंत्रालय और नागरिकता अधिनियम के अंतर्गत आता है।

नागरिकता जांच पर सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला

Bihar News: इस बहस की जड़ें सुप्रीम कोर्ट के 1995 के ऐतिहासिक ‘लाल बाबू हुसैन बनाम ERO’ मामले से जुड़ी हैं। इसमें ECI द्वारा 1992 और 1994 में जारी किए गए दो आदेशों को सर्वोच्च न्यायालय ने खारिज कर दिया था। इन आदेशों के अनुसार:

  1. जिलाधिकारियों को पुलिस के माध्यम से किसी व्यक्ति की नागरिकता की जांच का अधिकार दिया गया था।
  2. ERO (Electoral Registration Officer) को अधिकार था कि वे किसी व्यक्ति को विदेशी घोषित कर मतदाता सूची से उसका नाम हटा सकें।

इन आदेशों के बाद मुंबई में करीब 1.67 लाख लोगों को नोटिस जारी किए गए थे और उनसे जन्म प्रमाण पत्र, पासपोर्ट, नागरिकता प्रमाण पत्र और नागरिकता रजिस्टर में नाम होने का प्रमाण मांगा गया था।

दिल्ली में भी उठा था विवाद

Bihar News:  इसी प्रकार का मामला दिल्ली के पहाड़गंज इलाके में भी सामने आया था, जहाँ बड़ी संख्या में उत्तर प्रदेश और बिहार से आए गरीब मजदूर रहते हैं। वहां ERO ने कई लोगों के दस्तावेज खारिज कर दिए क्योंकि वे ECI के निर्देशों के अनुरूप नहीं थे। यह मामला भी नागरिकता पर सवाल उठाने का कारण बना और अंततः सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट रूप से कहा कि सिर्फ संदेह के आधार पर किसी की नागरिकता नहीं छीनी जा सकती।

सुप्रीम कोर्ट की सख्त टिप्पणियां और गाइडलाइंस

1995 के फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया कि:

Bihar News: मतदाता सूची से नाम हटाने की प्रक्रिया अर्ध-न्यायिक (quasi-judicial) होनी चाहिए।
किसी व्यक्ति की नागरिकता पर संदेह है तो ERO पहले उसके पहले के वोटिंग रिकॉर्ड की जांच करे।
व्यक्ति को नोटिस देकर अपनी बात रखने और दस्तावेज़ प्रस्तुत करने का पूरा मौका दिया जाए।
अंतिम निर्णय संविधान, नागरिकता अधिनियम और प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों* पर आधारित होना चाहिए।

असम का संदिग्ध नागरिकता (D Voter) विवाद

Bihar News: असम में 2002 और 1997 के दौरान ‘Intensive Revision’ के नाम पर हजारों लोगों को ‘D Voter’ यानी संदिग्ध नागरिक घोषित कर एक अलग सूची में डाल दिया गया। HRA चौधरी बनाम ECI मामले में भी कोर्ट ने 1995 के निर्णय को दोहराते हुए कहा था कि बिना प्रमाण और उचित कानूनी प्रक्रिया के किसी व्यक्ति को मतदाता सूची से बाहर करना गैरकानूनी है।

गोवा केस: चुनाव जीतने के बाद विदेशी निकला प्रत्याशी

Bihar News: 2013 में गोवा में एक बड़ा मामला सामने आया था, जहाँ एक प्रत्याशी चुनाव जीतने के बाद विदेशी नागरिक निकला। इस घटना ने पूरे सिस्टम को झकझोर दिया। इस मामले में गृह मंत्रालय को भी हस्तक्षेप करना पड़ा, जिसके बाद ECI ने Form 6 में बड़ा बदलाव किया। अब प्रत्येक मतदाता को यह घोषणा करनी होती है कि वह भारतीय नागरिक है और गलत जानकारी देने पर उसके खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी।

बिहार में क्या हो सकता है असर?

बिहार में SIR अभियान के तहत अगर नागरिकता जांच का दायरा बढ़ता है, तो यह सुप्रीम कोर्ट के 1995 के फैसले के खिलाफ जा सकता है। यदि इस प्रक्रिया में पुलिस जांच, संदेह के आधार पर नाम हटाने या बिना उचित प्रक्रिया के लोगों को सूची से निकालने की कोशिश हुई, तो यह पूरी प्रक्रिया कानूनी चुनौती के दायरे में आ सकती है।

निष्कर्ष: संवेदनशीलता और सावधानी जरूरी

सुप्रीम कोर्ट ने कई बार यह दोहराया है कि ECI का उद्देश्य नागरिकों के अधिकारों की रक्षा करना है, न कि उन्हें संदेह के घेरे में डालकर मताधिकार से वंचित करना। इसलिए चुनाव आयोग को चाहिए कि वह ऐसे संवेदनशील मामलों में गृह मंत्रालय और न्यायिक प्रक्रियाओं के अनुसार ही कार्य करे।

बिहार में चल रही यह प्रक्रिया चुनाव सुधार की दृष्टि से अहम है, लेकिन इसका क्रियान्वयन पूरी विधिक और संवैधानिक प्रक्रिया के तहत होना जरूरी है। नागरिकता जैसे संवेदनशील मुद्दे पर छोटी सी चूक भी बड़े विवाद का कारण बन सकती है।

 


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कमरुद्दीन सिद्दीकी को पत्रकारिता के क्षेत्र में 25 वर्षों का दीर्घ अनुभव प्राप्त है। वे स्नातक हैं और राजनीतिक व सामाजिक विषयों पर निर्भीक लेखन के लिए जाने जाते हैं। उन्होंने कट्टरपंथ, भ्रष्टाचार और अंधविश्वास के विरुद्ध आजीवन संघर्ष करने का संकल्प लिया है। वे अनेक सामाजिक संगठनों से सक्रिय रूप से जुड़े हुए हैं और समाज में जागरूकता लाने के लिए निरंतर कार्यरत हैं।

 

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