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Journalist Rights: देश के सबसे बड़े औद्योगिक शहर में पत्रकार नहीं खरीद सकते मकान

Journalist Rights: नोएडा। भारत के सबसे विकसित औद्योगिक शहर नोएडा में अब पत्रकारों और सामान्य परिवारों एवं मजदूरों का मकान खरीद पाना संभव नहीं है क्योंकि यहाँ पर ज़मीन का भाव आसमान छू रहा है। नोएडा के सेक्टरों में अब इस समय प्लाटों का रेट एक लाख पचास हजार प्रति वर्ग मीटर से चार लाख तक हो गया है। प्राधिकरण द्वारा नीलामी के द्वारा भूखंडों की बोली लगवा कर बेचने की प्रक्रिया के कारण जमीनों के रेट में अचानक से वृद्धि हुई है। जबकि नोएडा में लाखों ऐसे लोग हैं जो एक सौ मीटर का भूखंड नहीं खरीद सकते हैं। इस से यह स्पष्ट होता है कि अब जिन लोगों के पास एक करोड़ या उससे कम पैसों की व्यवस्था है वह लोग अगर नोएडा में घर खरीदने का सपना देख रहे हैं तो सपना, सपना ही रह जायेगा।

देश के विकास में अपना योगदान देने वाले पत्रकारों की कोई नहीं सोचता है
Journalist Rights: दिल्ली एनसीआर के हज़ारों मीडिया कर्मी नोएडा में रहतें हैं। कुछ बड़े नामचीन पत्रकारों को छोड़ कर ज़्यादातर ऐसे हैं जो बमुश्किल अपने परिवार का पालन पोषण कर रहे हैं, और लम्बे समय से नोएडा में ही निवास कर रहे हैं लेकिन आज उनकी स्थिति ऐसी नहीं है कि पचास गज का भी भूखंड खरीद सकें। ज्यादातर पत्रकार दिन भर प्रशासन के इर्दगिर्द घुमते रहते हैं, दूसरों के अधिकारों की रक्षा के लिए संघर्ष करते हैं लेकिन अपने और अपने परिवार के अधिकारों की रक्षा, उनके जीवन यापन और भविष्य की चर्चा शायद ही कोई करता है। यही कारण है कि आज नोएडा में पत्रकारों का एक बड़ा तपका तंगहाली में जीवन गुजार रहा है। आज जब बेलगाम महंगाई सौ से ज़्यादा तेज गति से हमारे जीवन को प्रभावित कर रही है, तो ऐसे में उन लोगों के भविष्य की चिंता करना स्वाभाविक है जिन्होंने दूसरों के भविष्य की चिंता में अपना जीवन गुजार दिया।

संगठनों के झूठे वादों में उलझा पत्रकारों का भविष्य
Journalist Rights: नोएडा में ग्रेटर नोएडा के बनने से पहले से मीडिया के लोग प्राधिकरण पर अपना दबदबा बनाये हुए थे और जब जब योजनाए आयी तो उसमें उन्होंने फायदा उठाया, वह लोग आज सुखी और सम्पन्न हैं लेकिन उनकी संख्या गिनी चुनी है। कुछ बड़े मीडिया घरानों ने भी अपने लिए औद्योगिक और आवासीय भूखंड आवंटित करवा लिया, लेकिन अपने स्टॉफ के भविष्य के लिए नहीं सोचा। यह वह लोग हैं जिनका उठना बैठना बड़े मंत्रियों और ब्यूरोक्रेट्स के साथ था लेकिन जो सामान्य पत्रकार हैं, जिनका उद्देश्य दिन भर खबरों का संकलन करना रहा है वह लोग जहाँ थे वहीँ खाली हाथ खड़े हैं।

Journalist Rights: पत्रकारों के हितों की रक्षा के वादे के साथ आगे आये संगठनों ने पत्रकारों का शोषण किया ! पत्रकारों के हितों के लिए जो संगठन बनाये गए उसके पदाधिकारियों ने शासन और सत्ता में अपनी धौंस दिखा कर अपना उल्लू सीधा कर लिया और सदस्यों को साल दर साल योजनाओं की जानकारी देते रहे लेकिन वर्षों बीत जाने के बाद धरातल पर कुछ नहीं दिखाई दिया। जिनकी ताक़त पर संगठन के पदाधिकारियों को शासन और सत्ता के गलियारे में घुसने का मौका मिला, उन्हीं लोगों के भविष्य को अन्धकारमय बना दिया गया।

Journalist Rights: यही कारण है कि पत्रकार आज संगठित नहीं हो पा रहे हैं, क्योंकि वह किसी पर भरोसा नहीं कर पा रहे हैं। नोएडा के पत्रकार संगठनों ने चाटुकारिता ज़्यादा किया, पत्रकारों के अधिकारों की बात कम किया जिसका नतीजा सामने है। संगठनों ने पत्रकारों को सिर्फ प्रलोभन दिया और अपना उल्लू सीधा किया। नोएडा में आज तक प्रशासन और प्राधिकरण ने पत्रकारों के वेलफेयर के विषय में सोचा ही नहीं। जिन लोगों ने जुगाड़ से अपना अखबार फर्जी पेपरों के आधार पर मान्यता प्राप्त करवा लिया वह लोग सुविधाओं का लाभ उठा रहे हैं और जो लोग ईमानदारी से सिर्फ पत्रकारिता कर रहे हैं वह लोग बमुश्किल अपने परिवार को चला पा रहे हैं। जो मान्यता प्राप्त नहीं हैं उनका क्या होगा ?
जो युवा पत्रकारिता में अपना भविष्य तलाशने निकलते हैं उनका भविष्य कहाँ है ?
पत्रकारों के संगठनों ने प्राधिकरण के सामने अपनी मांग को रखने और मनवाने के लिए कोई बड़ा आंदोलन क्यों नहीं किया ?

जाति, धर्म और राजनैतिक दलों के समर्थन में बिखरा हुआ है पत्रकार
Journalist Rights: पत्रकारों के अधिकारों की बात समय समय छोटी छोटी बैठकों में होती रही है, लेकिन बैठक समाप्त होते ही बात हवा में चली जाती है। कभी सदन के पटल तक उन की आवाज़ नहीं पहुँच पायी जो दूसरों की आवाज़ बनते हैं। इस का एक बड़ा कारण यह भी रहा है कि अब ज़्यादातर पत्रकार निष्पक्ष नहीं है। लोगों में जाति -पात, धर्म और राजनैतिक दलों की सोच हावी हो गयी है। बावजूद उनके जीवन में कोई परिवर्तन दिखाई नहीं दे रहा हैं।

देश में शिक्षक, आईएएस , पीसीएस, रेहड़ी, पटरी, किसानों और मजदूरों का संगठन सरकार और प्रशासन से अपनी बात मनवा लेता है लेकिन लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ के रक्षक पत्रकार के पास घर के लिए , स्कूल के लिए, अस्पताल के लिए, टोल प्लाजा से निकलने के लिए और तो और नोएडा में पार्किंग के लिए कोई पास तक की बात कोई नहीं करता है।

Journalist Rights: आज दैनिक जागरण ने लिखा है कि उद्योग बंधुओं के संगठनों के विरोध के बाद सरकार ने निर्णय लिया है कि अब औद्योगिक भूखंडों की नीलामी नहीं होगी क्योंकि नीलामी के कारण सरकार को फायदा तो हो रहा है लेकिन छोटे कारोबारी उद्योग स्थापित नहीं कर पा रहे हैं। सरकार ने उनकी बात को मान लिया और नीलामी प्रक्रिया पर रोक लगा दिया।
जब सरकार किसानों की बात मान सकती, मजदूरों की बात मान सकती है तो पत्रकारों की बात क्यों नहीं मान सकती है ?
अनुमान लगा सकते हैं आज जब चालीस और पचास हजार रुपया महीना कमाने वालों का घर नहीं चल रहा है तो फिर जिन साथियों की परमानेंट नौकरी नहीं है उनका घर कैसे चल रहा होगा ? ऐसे लोगों के विषय की ज़िम्मेदारी संगठनों की है।
प्राधिकरण में मोटा वेतन लेने के बाद भी उसके एम्पलॉईस को आवासीय भूखंड एम्पलॉईस कोटे के अंतर्गत मिल रहा था और लूटपाट करके कमाया वह अलग है। उद्योगपतियों को भी आवसीय कोटा मिला हुआ था लेकिन हमें कुछ नहीं ?
संगठित हो कर अपनीं मांगों को रखिये और एक जुट हो कर अख़बार, पोर्टल और यूटूबर सभी भ्र्ष्टाचार की पोल खोलो। निश्चितरूप से हमारी मांगों पर अमल होगा। टूटने और बिखरने से सिर्फ नुकसान होगा फायदा किसी नहीं होगा।


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कमरुद्दीन सिद्दीकी को पत्रकारिता के क्षेत्र में 25 वर्षों का दीर्घ अनुभव प्राप्त है। वे स्नातक हैं और राजनीतिक व सामाजिक विषयों पर निर्भीक लेखन के लिए जाने जाते हैं। उन्होंने कट्टरपंथ, भ्रष्टाचार और अंधविश्वास के विरुद्ध आजीवन संघर्ष करने का संकल्प लिया है। वे अनेक सामाजिक संगठनों से सक्रिय रूप से जुड़े हुए हैं और समाज में जागरूकता लाने के लिए निरंतर कार्यरत हैं।

 

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