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bihar Election 2025: राहुल गांधी और तेजस्वी यादव की रणनीति, क्या वोट चोरी का मुद्दा बनेगा हथियार?

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बिहार की राजनीति हमेशा से राष्ट्रीय परिदृश्य पर प्रभाव डालती रही है। 2025 के विधानसभा चुनाव की तैयारियों ने अभी से सियासी माहौल गरमा दिया है। एक ओर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और जनता दल यूनाइटेड (जदयू) सत्ता बचाने की जुगत में हैं, वहीं विपक्षी महागठबंधन (कांग्रेस, राजद, वाम दल) जनता को लुभाने के लिए अपनी रणनीति मजबूत कर रहा है।
इस चुनाव में दो चेहरे सबसे ज्यादा सुर्खियों में हैं – कांग्रेस नेता राहुल गांधी और राष्ट्रीय जनता दल (राजद) नेता तेजस्वी यादव। दोनों नेता मिलकर भाजपा-जदयू गठबंधन को कड़ी चुनौती देने का दावा कर रहे हैं।

राहुल गांधी की रणनीति और “वोट चोरी” का मुद्दा
राहुल गांधी हाल के महीनों में बिहार में लगातार सक्रिय हुए हैं। उन्होंने चुनावी रैलियों और जनसभाओं में चुनावी प्रक्रिया की पारदर्शिता और निष्पक्षता पर सवाल उठाए हैं। उनका सबसे बड़ा हमला “वोट चोरी” के मुद्दे पर है। राहुल गांधी का आरोप है कि इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (EVM) और प्रशासनिक दबाव का इस्तेमाल कर विपक्ष के वोटों को कम किया जा रहा है।

कांग्रेस की रणनीति यह है कि इस मुद्दे को जनता के बीच गूंजदार तरीके से उठाया जाए ताकि मतदाताओं में यह धारणा बने कि उनकी वोटिंग ताकत को दबाया जा रहा है। इस तर्क से वे युवाओं, छात्रों और बेरोजगारी से परेशान वर्ग को साथ जोड़ना चाहते हैं।
हालांकि, राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि “वोट चोरी” का मुद्दा जनता की सहानुभूति तो जगा सकता है, लेकिन इसका ठोस चुनावी फायदा तभी होगा जब कांग्रेस और राजद मिलकर जमीनी स्तर पर संगठन मजबूत करेंगे।

तेजस्वी यादव की तैयारी
राजद नेता और पूर्व उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव इस बार अपने अभियान को “रोज़गार और सामाजिक न्याय” पर केंद्रित कर रहे हैं। उनकी रणनीति है कि वे युवाओं को रोजगार, गरीब तबके को सामाजिक न्याय और किसानों को राहत के मुद्दे पर लामबंद करें।
पिछले विधानसभा चुनाव (2020) में तेजस्वी यादव ने महागठबंधन को मजबूत प्रदर्शन दिलाया था। इस बार वे राहुल गांधी के साथ तालमेल बैठाकर भाजपा-जदयू के खिलाफ साझा मोर्चा बनाना चाहते हैं।
तेजस्वी यादव का राजनीतिक आधार यादव-मुस्लिम वोट बैंक पर टिका हुआ है, लेकिन वे गैर-यादव पिछड़ी जातियों और महादलितों को जोड़ने की भी कोशिश कर रहे हैं।

गठबंधन की स्थिति
कांग्रेस और राजद दोनों समझते हैं कि अकेले चुनाव लड़कर भाजपा-जदयू को हराना मुश्किल है। इसलिए सीट बंटवारे की बातचीत महागठबंधन के लिए सबसे बड़ी चुनौती होगी। अगर सीटों का तालमेल सहजता से हो गया तो महागठबंधन चुनाव में बड़ा मुकाबला दे सकता है।
इसके विपरीत, भाजपा और जदयू नरेंद्र मोदी और नीतीश कुमार के चेहरे पर जनता से वोट मांगेंगे। भाजपा विकास और केंद्र की योजनाओं को मुद्दा बनाएगी, जबकि जदयू नीतीश कुमार के शासन मॉडल पर फोकस करेगी।

क्या राहुल गांधी को फायदा होगा?
राहुल गांधी का “वोट चोरी” वाला मुद्दा एक मनोवैज्ञानिक दबाव की राजनीति है। इसका फायदा तभी होगा जब विपक्ष इस मुद्दे को गांव-गांव तक ले जाकर यह विश्वास दिला सके कि वे सत्ता परिवर्तन के लिए संघर्ष कर रहे हैं।

कांग्रेस को अकेले इससे बड़ा लाभ मिलने की संभावना कम है, लेकिन राजद के साथ मिलकर यह मुद्दा चुनावी बहस का केंद्र बन सकता है। खासकर तब, जब बेरोजगारी, महंगाई और भ्रष्टाचार जैसे मुद्दों के साथ इसे जोड़ा जाए।

बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में राहुल गांधी और तेजस्वी यादव दोनों विपक्षी मोर्चे के प्रमुख चेहरे हैं। राहुल गांधी “वोट चोरी” और लोकतंत्र की रक्षा का संदेश दे रहे हैं, तो तेजस्वी यादव रोजगार और सामाजिक न्याय की राजनीति को आगे बढ़ा रहे हैं।

यदि दोनों नेताओं की रणनीति और संगठनात्मक मजबूती एक साथ चल पाई, तो महागठबंधन सत्ता पक्ष को कड़ी चुनौती दे सकता है। लेकिन यदि सीट बंटवारे या नेतृत्व को लेकर मतभेद गहराए, तो भाजपा-जदयू गठबंधन इसका सीधा लाभ उठा सकता है। लेखक-क़मरुद्दीन सिद्दीकी (ईमेल-editorgulistan@gmail.com

 

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