कोंडली विधानसभा: जलजमाव, कूड़े और अतिक्रमण के बीच नारकीय जीवन, जिम्मेदार नेताओं-अधिकारियों की चुप्पी
पूर्वी दिल्ली की कोंडली विधानसभा हर बारिश के मौसम में ‘नरक’ में तब्दील हो जाती है। गलियों और सड़कों पर इतना जलजमाव हो जाता है कि लोगों का घर से निकलना दूभर हो जाता है। नालों से उठती बदबू, जगह-जगह बिखरे कूड़े के ढेर और फैली गंदगी से बीमारियाँ तेजी से फैलने का खतरा हमेशा बना रहता है। पर हैरानी की बात यह है कि जनता की इन तकलीफों को देखने और हल करने वाला कोई नहीं है।
गांव से कॉलोनियों तक गंदगी का साम्राज्य
घरौली गांव से लेकर कोंडली, मुल्ला कॉलोनी और रजवीर कॉलोनी तक एक ही दृश्य दिखाई देता है—कूड़े के ढेर, गंदगी और सीवर की बदबू। कोंडली कॉलोनी का बड़ा कूड़ा घर वर्षों से यहां खड़ा है, जो पूरे क्षेत्र की पहचान बन चुका है। नेताओं और अफसरों के दफ्तर से चंद किलोमीटर की दूरी पर स्थित यह कूड़ा घर सबको मुंह चिढ़ाता है, लेकिन इसे हटाने की जहमत किसी ने नहीं उठाई। कारण साफ है—इस इलाके में ज़्यादातर दलित, पिछड़े और मजदूर वर्ग के लोग रहते हैं, जिनकी तकलीफों से नेताओं और विभागीय अफसरों को कोई फर्क नहीं पड़ता।
सड़कें बनी मौत का जाल
केरला स्कूल से नोएडा मोड़ तक पीडब्ल्यूडी ने डिवाइडर बनाने का काम शुरू किया है। लेकिन सुरक्षा इंतजाम शून्य हैं। दिन-रात सड़क पर मलबा फैला रहता है, बड़े-बड़े पत्थरों के टुकड़े राहगीरों की जान के लिए खतरा बने हुए हैं। सुबह और दोपहर को हजारों स्कूली बच्चे इन सड़कों से गुजरते हैं, लेकिन न पुलिस तैनात होती है और न ही ट्रैफिक व्यवस्था का ध्यान रखा जाता है। किसी भी दिन बड़ा हादसा हो सकता है, लेकिन प्रशासन आंखें मूंदे बैठा है।
नेताओं की संवेदनहीनता और मिलीभगत
सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि इस क्षेत्र के विधायक कुलदीप कुमार, निगम पार्षद प्रियंका गौतम और मुनेश डेढ़ा खुद यहीं रहते हैं। लेकिन इन्हें न तो जलजमाव दिखाई देता है, न कूड़े के ढेर और न ही अतिक्रमण। विभागीय मिलीभगत से सरकारी ज़मीनों पर कब्ज़ा जारी है और अफसर-नेता सब ‘गूंगे, बहरे और अंधे’ बने हुए हैं, क्योंकि सबको अपना-अपना हिस्सा मिल रहा है। जनता मर रही है तो मरती रहे, किसी को परवाह नहीं।
स्थानीय निवासियों की पीड़ा
“बरसात में नाले उफान पर आ जाते हैं, घर के अंदर तक पानी भर जाता है। छोटे-छोटे बच्चे गंदे पानी में खेलने को मजबूर हैं। बीमारियाँ फैल रही हैं लेकिन कोई सुनवाई नहीं होती।” – अनीता देवी, निवासी घरौली गाँव।
“सड़क पर इतने बड़े-बड़े पत्थर और मलबे पड़े हैं कि रोज़ गिरने का डर रहता है। अगर किसी बच्चे के साथ हादसा हो गया तो जिम्मेदार कौन होगा?” – मोहम्मद सलीम, अभिभावक।
“कूड़ा घर हटा देने का वादा चुनाव में किया था, लेकिन आज तक कुछ नहीं हुआ। नेता वोट मांगने आते हैं, फिर पाँच साल तक गायब रहते हैं।” – रमेश कुमार, निवासी कोंडली कॉलोनी।
“दलित और मजदूर वर्ग के लोगों की तकलीफ किसी को नहीं दिखती। चुनाव आते ही हमें जाति और धर्म के नाम पर बांट दिया जाता है और फिर हमें उसी गंदगी में जीने को छोड़ दिया जाता है।” – शांति प्रसाद, सामाजिक कार्यकर्ता।
आरक्षित सीट पर सबसे ज्यादा शोषण
कोंडली विधानसभा आरक्षित सीट है। यहां से हर बार दलित वर्ग का उम्मीदवार जीतकर विधायक और पार्षद बनता है। चुनाव प्रचार के दौरान यह नेता बड़ी-बड़ी बातें करते हैं, वोट पाने के लिए जाति और धर्म का सहारा लेते हैं। लेकिन जैसे ही चुनाव जीतते हैं, सबसे पहले इन्हीं दलित और पिछड़े वर्ग के मतदाताओं का शोषण शुरू हो जाता है। यही वजह है कि कोंडली, घरौली, मुल्ला कॉलोनी, रजवीर कॉलोनी, कल्याणपुरी और खिचड़ीपुर आज भी नारकीय हालात झेल रहे हैं।
जनता की पीड़ा और नेताओं का मौन
फेस-3 के बड़े कूड़ा घर हटा दिए गए, लेकिन कोंडली कॉलोनी का कूड़ा घर आज भी जस का तस खड़ा है। कारण सिर्फ इतना है कि यहां गरीब और मजदूर रहते हैं। नेताओं को पता है कि चुनाव आते ही जाति और धर्म के नाम पर वोट गोलबंद करवा लिए जाएंगे, चाहे जनता कैसी भी हालत में जी रही हो। यही वजह है कि आज कोंडली और मयूर विहार फेस-3 की पहचान सड़कों पर फैली गंदगी, कूड़े के ढेर और खुलेआम घूमते आवारा पशु बन गए हैं।
जनता का सवाल—कब तक?
हर चुनाव में जनता को सपने दिखाए जाते हैं। चुनाव जीतकर सड़क छाप नेता करोड़पति बन जाते हैं और अधिकारी मलाई काटते हैं। लेकिन आम जनता नारकीय जीवन जीने को मजबूर है। सवाल यह है कि आखिर कब तक कोंडली की जनता कूड़े, गंदगी, जलजमाव और अराजकता में जीने के लिए अभिशप्त रहेगी? कब तक नेता सिर्फ फोटो खिंचवाने और भाषण देने तक सीमित रहेंगे और कब तक जनता के हिस्से में सिर्फ दर्द और उपेक्षा आती रहेगी?