मौलाना रशीदी का डिंपल यादव पर बयान: अभिव्यक्ति की आज़ादी नहीं, सोच का दीवालियापन-क़मरुद्दीन सिद्दीक़ी
भारतीय लोकतंत्र और सामाजिक संरचना में महिला सम्मान का जो स्थान है, वह न केवल संविधान की मूल भावना का प्रतीक है, बल्कि हमारे तमाम धार्मिक, सांस्कृतिक और नैतिक मूल्यों की बुनियाद भी है। ऐसे में यदि कोई व्यक्ति — और वह भी एक मौलाना होने का दावा करने वाला — सार्वजनिक मंच से एक महिला राजनेता के खिलाफ अभद्र, अपमानजनक और शर्मनाक बयान देता है, तो यह सिर्फ एक व्यक्ति विशेष का नहीं, बल्कि पूरे समाज और धर्म की गरिमा पर हमला है।
डिंपल यादव पर टिप्पणी: घिनौनी मानसिकता की मिसाल
डिंपल यादव — एक सधी हुई, गरिमामयी और अनुभवी महिला नेता हैं। एक राजनीतिक परिवार से ताल्लुक रखने के बावजूद उन्होंने अपने दम पर जनता से संवाद किया, संसद में अपनी बात रखी, और अनेक सामाजिक मुद्दों पर मुखर रहीं। जब कोई व्यक्ति उनके खिलाफ निम्नस्तरीय भाषा का इस्तेमाल करता है, तो वह सिर्फ एक महिला का नहीं, बल्कि पूरे भारतीय महिला समुदाय का अपमान करता है।
और यह और भी अधिक शर्मनाक तब हो जाता है जब यह बयान किसी “धर्मगुरु” की जुबान से आता है, जिसे समाज संयम, शालीनता और मर्यादा की शिक्षा देने वाला मानता है।
मौलाना रशीदी: धर्मगुरु या कंट्रोवर्सी के सौदागर?
जिस प्रकार से मौलाना रशीदी ने टी.वी. चैनलों पर आकर सस्ती लोकप्रियता और पैसे के लालच में बयानबाज़ी की, उससे यह स्पष्ट होता है कि वे न तो इस्लामी मूल्यों को समझते हैं, न उनके अंदर कोई नैतिक ज़िम्मेदारी बची है।
इस्लाम में सख़्त आदेश है कि औरतों की इज़्ज़त की जाए, उनके साथ सम्मान और अदब से पेश आया जाए। पैग़म्बर मुहम्मद (सल्ल.) ने कहा है —
“तुम में सबसे अच्छा वह है, जो अपनी औरतों के साथ अच्छा व्यवहार करता है।”
फिर एक मुस्लिम होकर, एक मौलाना होकर यदि आप औरतों के लिए अशोभनीय शब्दों का प्रयोग करते हैं, तो आप इस्लाम के नहीं, शर्म और इंसानियत के दुश्मन हैं।
कानूनी कार्रवाई हो आवश्यक
देश के कानून की धारा 354 (A), 509, और आईटी एक्ट की अन्य धाराएं ऐसे बयानों को दंडनीय अपराध मानती हैं। यह केवल एफआईआर दर्ज करने का मामला नहीं, बल्कि एक ऐसा उदाहरण बनाने का समय है जिससे भविष्य में कोई भी पैसे और फुटेज के भूखे नकली मौलाना महिलाओं के सम्मान से खेलने की हिम्मत न करे।
यदि कानून इन पर सख्ती से कार्रवाई नहीं करता, तो इससे न केवल महिला समाज में डर पैदा होगा, बल्कि धार्मिक नेतृत्व की छवि भी धूमिल होगी।
यह इस्लाम नहीं, यह नफरत है
मौलाना रशीदी जैसे लोग मजहब के नाम पर ज़हर घोलने का काम करते हैं। वे मुसलमानों के हितैषी नहीं, बल्कि उनके खिलाफ साजिश के मोहरे बन चुके हैं।
धर्म की पोशाक पहनकर जो लोग नफरत, अश्लीलता और महिला अपमान फैलाते हैं, वे न इस्लाम के हैं, न इंसानियत के।
समाज को आवाज़ उठानी होगी
अब वक्त आ गया है कि हम मौन न रहें। महिलाओं के सम्मान, चाहे वे किसी भी धर्म, जाति या राजनीतिक विचारधारा से हों — हमारी साझा ज़िम्मेदारी है।
टीवी चैनलों को भी ऐसे विवादित चेहरों को बुलाना बंद करना चाहिए।
मुस्लिम समाज के ज़िम्मेदार लोगों को खुद आगे आकर इन मौलवियों का विरोध करना चाहिए।
और सबसे अहम, सरकार को कानून के तहत बिना देर किए सख्त कदम उठाने चाहिए।