आज के दौर में जब पेशेवरियत का मतलब अक्सर केवल पैसा कमाना समझ लिया गया है, ऐसे समय में यदि कोई वकालत जैसे पवित्र पेशे को अपने मिशन और सेवा का माध्यम बना ले, तो वह अपने आप में एक मिसाल होता है। अधिवक्ता चन्द्रगुप्त मौर्या उन्हीं चंद क्रांतिकारी युवाओं में से हैं, जिन्होंने वकालत को केवल रोज़गार नहीं बल्कि समाज में न्याय और इंसाफ़ की लड़ाई का हथियार बना लिया है।
दिल्ली के तीस हज़ारी कोर्ट में प्रैक्टिस करने वाले चन्द्रगुप्त मौर्या साधारण वकीलों से बिल्कुल अलग हैं। सुबह अदालत परिसर में अपने चेंबर में पहुंचना, केस की पैरवी करना—यह सब तो हर वकील करता है, लेकिन मौर्या साहब का मक़सद केवल फीस लेना और पैसा कमाना नहीं है। उनका मिशन है, उन मजलूमों और बेसहारों की आवाज़ बनना, जिनकी चीखें अक्सर अदालत की दहलीज तक पहुँचने से पहले ही थम जाती हैं।
मौर्या के चेंबर में जब कोई मज़लूम पहुँचता है, तो वहाँ पैसे का सवाल नहीं उठता। वहाँ केवल एक ही बात होती है—“सत्य की जीत और अन्याय का अंत।” कई मजबूर लोग बताते हैं कि जब सबने हमें दरवाज़े से लौटा दिया, तब मौर्या साहब ने हमें गले लगाया और बिना फीस की परवाह किए केस लड़ा। यही कारण है कि दिल्ली ही नहीं, बल्कि बिहार, बनारस, इलाहाबाद, लखनऊ, हरियाणा और पंजाब तक उनकी गूंज सुनाई देती है।
अधिवक्ता मौर्या अपने जीवन के अनुभव से बताते हैं कि उन्होंने दलितों, गरीबों और शोषितों पर अत्याचार व अन्याय को करीब से देखा है। इसीलिए उन्होंने वकालत का रास्ता पैसा कमाने के लिए नहीं, बल्कि लाचार और बेसहारा लोगों को न्याय दिलाने के लिए चुना। यही जज़्बा उनकी पत्नी में भी है, जो स्वयं अधिवक्ता हैं और उनके साथ मिलकर इस मिशन को आगे बढ़ा रही हैं।
यही नहीं, अधिवक्ता चन्द्रगुप्त मौर्या सिर्फ व्यक्तिगत स्तर पर ही नहीं बल्कि संगठित रूप से भी समाज में न्याय और अधिकारों की अलख जगा रहे हैं। वे अंतर्राष्ट्रीय मानव अधिकार सुरक्षा परिषद, भीम आर्मी भारत एकता मिशन, RTI हेल्प फाउंडेशन जैसे समाजसेवी संगठनों के साथ मिलकर देशभर में आवाज़हीनों की आवाज़ बुलंद कर रहे हैं।
आज जब कुछ लोग वकालत जैसे महान पेशे को लालच और स्वार्थ की वजह से कलंकित कर रहे हैं, तब चन्द्रगुप्त मौर्या जैसे अधिवक्ता इस पेशे की गरिमा को पुनर्जीवित कर रहे हैं। वे हमें याद दिलाते हैं कि न्याय केवल अमीरों का हक़ नहीं है, बल्कि हर उस इंसान का है जिसे भगवान ने सांसें दी हैं।
समाज को ऐसे ही सच्चे सिपाहियों की ज़रूरत है, जो न केवल क़ानून की किताब से, बल्कि दिल और ज़मीर से भी लड़ाई लड़ें। अधिवक्ता चन्द्रगुप्त मौर्या और उनकी धर्मपत्नी के इस अदम्य साहस, सेवा-भाव और समर्पण को मेरा शत-शत नमन।
ऐसे समाजसेवी अधिवक्ता ही हमारे समय के असली नायक हैं।