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अजीत भारती विवाद: क्या अभिव्यक्ति की आज़ादी न्यायपालिका से बड़ी हो सकती है?

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नई दिल्ली। सोमवार को उत्तर प्रदेश की नोएडा पुलिस ने सोशल मीडिया पर न्यायपालिका की मर्यादा को धूमिल करने, नफरत फैलाने और उकसाने वाली पोस्ट करने वाले यूट्यूबर अजीत भारती को उनके हालिया वीडियो को लेकर हिरासत में लिया। आरोप है कि उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस बी.आर. गवई पर की गई टिप्पणी में ऐसी बातें कहीं जो “न्यायपालिका के प्रति असंतोष और हिंसा भड़काने वाली” मानी जा रही हैं। यह मामला केवल एक व्यक्ति की गिरफ्तारी का नहीं, बल्कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और संस्थागत गरिमा के बीच संतुलन पर उठते सवालों का है।

जानकारी के अनुसार, नोएडा सेक्टर-58 पुलिस ने अजीत भारती को पूछताछ के लिए थाने बुलाया और बाद में सेक्टर-6 स्थित डीसीपी ऑफिस ले जाया गया। कुछ घंटों की जांच के बाद उन्हें छोड़ दिया गया, लेकिन उनके वीडियो की डिजिटल फॉरेंसिक जांच शुरू हो चुकी है। पुलिस का कहना है कि यह देखा जा रहा है कि उनके बयानों में किसी संवैधानिक संस्था या पद के प्रति घृणा फैलाने वाला तत्व तो नहीं।

यह पूरा विवाद तब शुरू हुआ जब सुप्रीम कोर्ट में एक वकील ने सीजेआई बी.आर. गवई पर जूता फेंकने की कोशिश की थी। इस घटना ने देशभर में न्यायपालिका के सम्मान और जनभावनाओं दोनों को झकझोर दिया। इसी घटना पर प्रतिक्रिया देते हुए अजीत भारती ने वीडियो बनाया, जिसके शब्द अब कानूनी जांच के दायरे में हैं।

इस बीच, सोशल मीडिया पर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को लेकर जोरदार बहस छिड़ गई है। कुछ लोग इसे लोकतंत्र की आवाज़ दबाने की कोशिश बता रहे हैं, तो कुछ का कहना है कि संविधान के अनुच्छेद 19(1)(a) के तहत मिली स्वतंत्रता का अर्थ यह नहीं कि कोई संस्था या व्यक्ति न्यायपालिका की गरिमा को ठेस पहुँचाए।

भारतीय लोकतंत्र का सार स्वतंत्रता और जिम्मेदारी दोनों में निहित है। संविधान हमें बोलने की आज़ादी देता है, लेकिन उसी संविधान का अनुच्छेद 19(2) यह भी कहता है कि यह स्वतंत्रता राष्ट्र की सुरक्षा, सार्वजनिक व्यवस्था और न्यायपालिका की गरिमा के दायरे में सीमित रहेगी।

इस घटना ने एक बार फिर देश को यह सोचने पर मजबूर किया है कि क्या सोशल मीडिया की स्वतंत्रता अब लोकतंत्र की शक्ति बन रही है या उसकी मर्यादा को लांघ रही है।
कानून कहता है – न्यायपालिका की आलोचना हो सकती है, लेकिन उसकी गरिमा का अपमान नहीं।
और यही वह महीन रेखा है, जहां आज की डिजिटल अभिव्यक्ति और लोकतांत्रिक जिम्मेदारी आमने-सामने खड़ी दिखाई देती है।

 

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