Bihar Assembly Election 2025: बिहार की राजनीति वर्षों से जातीय और धार्मिक समीकरणों पर आधारित रही है। मुस्लिम समुदाय राज्य का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जिसकी जनसंख्या न केवल संख्या में भारी है, बल्कि चुनावी राजनीति में भी निर्णायक भूमिका निभाती है। अक्सर यह सवाल उठता है कि क्या मुस्लिम नेतृत्व (क़यादत) यदि एकजुट हो जाए तो क्या वह बिहार में सरकार बनाने में सक्षम हो सकता है? इस लेख में हम इसी प्रश्न का विश्लेषण करेंगे – आंकड़ों, सामाजिक वास्तविकताओं और राजनीतिक समीकरणों के आधार पर।
1. बिहार में मुस्लिम जनसंख्या: आंकड़ों की स्थिति
2021 की जनगणना के अनुमान और 2011 की वास्तविक जनगणना के अनुसार, बिहार में मुस्लिम जनसंख्या करीब 17% से 18% के आसपास है।
बिहार की कुल आबादी लगभग 13 करोड़ के करीब है।
इस हिसाब से राज्य में मुस्लिम समुदाय की आबादी लगभग 2.2 करोड़ है।
कई जिलों जैसे किशनगंज, अररिया, कटिहार, पूर्णिया, सीवान, दरभंगा, मधुबनी आदि में मुस्लिम आबादी 30% से 60% तक है।
2. मुस्लिम वोट बैंक की ताक़त
बिहार विधानसभा में कुल 243 सीटें हैं।
80 से ज्यादा सीटों पर मुस्लिम वोट निर्णायक भूमिका निभाते हैं।
35–40 सीटें ऐसी हैं जहां मुस्लिम वोट 30% या उससे अधिक हैं।
यदि मुस्लिम मतदाता एकजुट होकर किसी एक पार्टी या गठबंधन को समर्थन दें, तो वह 40–50 सीटों तक आराम से जीत सकते हैं।
3. अब तक की मुस्लिम कयादत की भूमिका
बिहार में मुस्लिम नेतृत्व अलग राजनीतिक ताक़त के रूप में उभर नहीं पाया है।
मुस्लिम नेता अधिकतर राजद (RJD), कांग्रेस, जदयू (JDU) जैसी बड़ी पार्टियों के छत्रछाया में रहे हैं।
असदुद्दीन ओवैसी की AIMIM ने सीमांचल क्षेत्र में कुछ सफलता प्राप्त की है (2020 में 5 सीटें जीती थीं), लेकिन वह राज्य स्तर पर स्थायी प्रभाव नहीं बना सकी।
4. अगर मुस्लिम कयादत एकजुट हो जाए तो?
संभावनाएं:
45–50 सीटों पर प्रत्यक्ष जीत की संभावना।
अन्य सीटों पर “किंगमेकर” की भूमिका।
दलित, पिछड़े वर्गों और अल्पसंख्यकों के साथ गठजोड़ होने पर 100 से अधिक सीटों तक प्रभाव संभव।
चुनौतियां:
मुस्लिम समाज में विचारधारा और क्षेत्रीय विभाजन मौजूद हैं।
एकजुटता के लिए नेतृत्व का स्पष्ट चेहरा नहीं है।
मतों का बिखराव (जैसे AIMIM, RJD, कांग्रेस, जदयू, लोजपा सभी में मुस्लिम उम्मीदवार)।
5. सीमांचल: मुस्लिम राजनीति का केंद्र
सीमांचल (अररिया, किशनगंज, पूर्णिया, कटिहार) में मुस्लिम जनसंख्या 40% से अधिक है।
यहां AIMIM ने अपनी पहचान बनाई है।
यदि इस क्षेत्र में मुस्लिम नेतृत्व मजबूत हो, तो एक “मिनी मुस्लिम बेल्ट” के रूप में बिहार विधानसभा में निर्णायक शक्ति बन सकता है।
6. भविष्य की राह: क्या होनी चाहिए रणनीति?
एक राजनीतिक मंच या गठबंधन का निर्माण जिसमें मुस्लिम हितों को प्राथमिकता दी जाए।
केवल मुस्लिम मुद्दों पर नहीं, बल्कि विकास, शिक्षा, बेरोजगारी जैसे मुद्दों पर सभी वर्गों को जोड़ना ज़रूरी है।
दलित-मुस्लिम गठबंधन (DM Factor) बिहार की राजनीति में नई दिशा दे सकता है।
बिहार में मुस्लिम वोट बैंक काफी मजबूत और प्रभावशाली है। यदि मुस्लिम क़यादत एकजुट होकर राजनीति करे, तो वे राज्य की सत्ता में हिस्सेदारी का दावा कर सकते हैं। हालांकि, इसके लिए केवल भावनात्मक एकता नहीं, बल्कि रणनीतिक समझदारी, नेतृत्व की स्पष्टता और सभी वर्गों को साथ लेने की सोच आवश्यक है। यदि ऐसा हो पाया तो आने वाले चुनावों में बिहार की राजनीति एक नया मोड़ ले सकती है। विश्लेषक –













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