आज का दिन पूरी दुनिया-ए-इस्लाम के लिए मुबारक और बाइस-ए-खुशी है, क्योंकि इसी दिन रहमतुल्लिल आलमीन हज़रत मुहम्मद ﷺ इस फ़ानी दुनिया में तशरीफ़ लाए। उनकी विलादत ने जहालत (अज्ञानता) और जुल्म के अँधेरों को चीरकर इंसानियत को नूर-ए-हिदायत अता किया। उनका पैग़ाम न सिर्फ़ अरब के लिए, बल्कि पूरी बशरियत के लिए था।
बचपन और शुरुआती ज़िंदगी
मुहम्मद ﷺ का जन्म 570 ईस्वी में मक्का मुअज़्ज़मा में हुआ। बचपन में ही वालिद और वालिदा का साया उठ गया और आप यतीम हो गए। मगर अल्लाह तआला ने आपको अपने हिफ़्ज़-ओ-अमान में रखा। लोग आपको आपकी सच्चाई और अमानतदारी की वजह से अल-अमीन (यानी भरोसेमंद) पुकारते थे।
पैग़ंबरी की शुरुआत
40 साल की उम्र में ग़ार-ए-हिरा में फ़रिश्ते जिब्रील अमीन आपके पास तशरीफ़ लाए और अल्लाह तआला का पहला पैग़ाम (वह़्यी) सुनाया – “इक़रा बिस्मि रब्बिकल-लज़ी ख़लक़” यानी “पढ़ो, अपने उस रब के नाम से जिसने पैदा किया।” यही से पैग़ंबरी का आग़ाज़ हुआ और मुहम्मद ﷺ ने तौहीद, इंसाफ़ और मोहब्बत का संदेश देना शुरू किया।
तालीमात (उपदेश)
हज़रत मुहम्मद ﷺ की तालीमात आज भी इंसानियत के लिए रहनुमा हैं:
तौहीद: अल्लाह एक है और उसी की इबादत करनी चाहिए।
बराबरी: अल्लाह के नज़दीक सब इंसान बराबर हैं – न कोई ऊँचा न कोई नीचा।
रहमत व मोहब्बत: पड़ोसियों के हक़, ग़रीबों की मदद और मज़लूमों का सहारा लेना सबसे बड़ी नेकी है।
ख़ातून का हक़: मुहम्मद ﷺ ने औरतों को इज़्ज़त, विरासत और तालीम का हक़ दिया।
अमन-ओ-अमानी: नफ़रत, जुल्म और इंतक़ाम की जगह मोहब्बत, इंसाफ़ और माफ़ी का रास्ता दिखाया।
अहम वाक़ियात
मक्का में मुख़ालफ़त: जब आपने इस्लाम का पैग़ाम पहुँचाना शुरू किया तो कुरैश क़बीले के लोग मुख़ालिफ़ हो गए।
हिजरत-ए-मदीना (622 ई.): ज़ुल्म बढ़ने पर आप ﷺ ने अपने सहाबा के साथ मक्का से मदीना की हिजरत फ़रमाई। यही वाक़िया इस्लामी कैलेंडर की बुनियाद बना।
मदीना का निज़ाम: वहाँ आपने अमन-ओ-इंसाफ़ पर आधारित समाज कायम किया, जहाँ मुसलमान, यहूदी और ईसाई मिलजुलकर रहते थे।
फ़त्ह-ए-मक्का: सालों बाद जब मक्का फ़तह हुआ तो आपने अपने दुश्मनों को भी माफ़ कर दिया। यह इंसानियत और रहमत की सबसे बड़ी मिसाल है।
इंतिक़ाल और विरासत
11 हिजरी (632 ईस्वी) में हज़रत मुहम्मद ﷺ ने मदीना मुनव्वरा में वफ़ात पाई। लेकिन उनकी तालीमात और पैग़ाम हमेशा के लिए रह गए। आज भी कुरआन-ए-पाक और अहादीस-ए-मुबारका पूरी इंसानियत के लिए रहनुमा-ए-ज़िंदगी हैं।
हज़रत मुहम्मद ﷺ सिर्फ़ एक नबी ही नहीं, बल्कि इंसानियत के सबसे बड़े मुहसिन थे। उन्होंने सिखाया कि असली ताक़त तलवार में नहीं बल्कि इंसाफ़, मोहब्बत और रहमत में है। आज यौमे-विलादत-ए-मुहम्मद ﷺ पर हमें चाहिए कि उनके पैग़ाम को अपनी ज़िंदगी का हिस्सा बनाएँ और अमन-ओ-भाईचारे को आम करें। (उपरोक्त जानकारी इंटरनेट के द्वारा एकत्र की गयी है।)