Corruption in UPSIDA: वर्षों से जमे अधिकारी सवालों के घेरे में, भ्रष्टाचार और नीति उल्लंघन की बढ़ती शिकायतें
Corruption in UPSIDA: लखनऊ | विशेष संवाददाता। उत्तर प्रदेश की औद्योगिक प्रगति के केंद्र माने जाने वाले उत्तर प्रदेश राज्य औद्योगिक विकास प्राधिकरण (UPSIDA) में इन दिनों गंभीर अनियमितताओं और तबादला नीति की अनदेखी को लेकर लगातार सवाल उठ रहे हैं। आरोप हैं कि विभाग में वर्षों से जमे अधिकारी न सिर्फ नियमों की अनदेखी कर रहे हैं, बल्कि निवेशकों का भी शोषण कर रहे हैं।
Corruption in UPSIDA: सरकार की तबादला नीति के अनुसार किसी भी अधिकारी या कर्मचारी को लंबे समय तक एक ही स्थान पर तैनात नहीं किया जाना चाहिए। लेकिन यूपीसीडा में कई अधिकारी 5 से 10 वर्षों तक एक ही ज़ोन या पद पर बने हुए हैं। लखनऊ, गाजियाबाद, ग्रेटर नोएडा, ट्रोनिका सिटी, कानपुर, बरेली, आगरा और अलीगढ़ जैसे उच्च-राजस्व औद्योगिक क्षेत्रों में ये अधिकारी स्थायी पकड़ बनाकर बैठे हैं। यह भी पढ़ें —UPSIDA Recruitment Scam: मलाईदार पदों पर पहुँच कर ऊपर तक हिस्सा पहुंचा रहे अधिकारी, जाँच गयी ठण्डे बस्ते में!
भ्रष्टाचार की सुगंध और दफ्तरों का निजीकरण
जांच में सामने आया है कि कुछ अधिकारियों ने अपने तैनाती स्थल को निजी संपत्ति की तरह इस्तेमाल करना शुरू कर दिया है। उच्च-आय वाले औद्योगिक ज़ोन उन्हीं अधिकारियों को आवंटित हैं, जबकि कई क्षेत्रीय प्रबंधकों को दो-दो ज़ोन का अतिरिक्त कार्यभार दे दिया गया है, जिससे संसाधनों का अनुचित उपयोग हो रहा है।
Corruption in UPSIDA: सूत्रों की मानें तो विभागीय दलालों और अधिकारियों के बीच साठगांठ के चलते एक संगठित भ्रष्ट तंत्र तैयार हो गया है, जहाँ बिना चढ़ावे के कोई फाइल आगे नहीं बढ़ती। बिना नियमानुसार प्रक्रिया के भूखंडों का आवंटन, पुराने आवेदन बिना सूचना के निरस्त करना, और रद्दीकरण के बावजूद रिजर्वेशन मनी वापस न करना आम हो गया है।
निवेशकों की पीड़ा: तीन-तीन साल से लंबित रिफंड
हजारों निवेशक ऐसे हैं जिनके भूखंड आवंटन आवेदन रद्द किए जा चुके हैं, लेकिन उन्हें वर्षों से रिफंड नहीं मिला है। कुछ मामलों में तीन साल से अधिक समय से निवेशक कार्यालयों के चक्कर काट रहे हैं, पर उन्हें सिर्फ आश्वासन मिलता है, समाधान नहीं। यह भी पढ़ें —https://www.unitedindialive.com/corruption-in-upsida-%e0%a4%ad%e0%a5%8d%e0%a4%b0%e0%a4%b7%e0%a5%8d%e0%a4%9f-%e0%a4%85%e0%a4%a7%e0%a4%bf%e0%a4%95%e0%a4%be%e0%a4%b0%e0%a4%bf%e0%a4%af%e0%a5%8b%e0%a4%82-%e0%a4%94%e0%a4%b0-%e0%a4%95/
यह स्थिति राज्य सरकार के Ease of Doing Business मिशन की साख पर सवाल खड़ा करती है, जो उद्योगों को उत्तर प्रदेश की ओर आकर्षित करने के लिए चलाया जा रहा है।
सीईओ और वरिष्ठ अधिकारियों की भूमिका पर उठे सवाल
यूपीसीडा के वर्तमान मुख्य कार्यपालक अधिकारी खुद लंबे समय से पद पर बने हुए हैं। सवाल उठता है कि क्या यह राजनीतिक संरक्षण का परिणाम है, या फिर अंदरूनी तंत्र की मजबूती का संकेत?
ऐसे में यह जरूरी हो गया है कि न सिर्फ क्षेत्रीय स्तर पर जमे अधिकारियों की जिम्मेदारी तय की जाए, बल्कि शीर्ष स्तर पर भी पारदर्शिता और जवाबदेही लागू की जाए। यह भी पढ़ें —https://www.unitedindialive.com/corruption-in-upsida-large-scale-corruption-in-upsida-officers-become-millionaires-investors-are-upset/
क्या किया जाना चाहिए — विशेषज्ञों की राय
- तबादला नीति का सख्त पालन
तीन वर्षों से अधिक समय से एक ही पद पर तैनात अधिकारियों का तत्काल तबादला किया जाए। - रिफंड मामलों की स्वतंत्र ऑडिट
सभी लंबित रिफंड मामलों की विशेष ऑडिट कराई जाए और उत्तरदायी अधिकारियों पर कार्रवाई हो। - भ्रष्टाचार पर ज़ीरो टॉलरेंस नीति
विभागीय मिलीभगत की जांच कर दोषियों के विरुद्ध विभागीय व कानूनी कार्यवाही सुनिश्चित की जाए। - डिजिटल ट्रैकिंग सिस्टम लागू किया जाए
निवेशकों के आवेदन, भुगतान और रिफंड को ट्रैक करने के लिए पारदर्शी ऑनलाइन प्लेटफॉर्म उपलब्ध हो। - निवेश मित्रा पोर्टल पर लंबित शिकायतें और भूखंडों के आवंटन का समय से निस्तारण किया जाये।
- हर तीन माह में निवेशकों के साथ शीर्ष अधिकारीयों की बैठक हो
- सीईओ और वरिष्ठ अधिकारियों का मूल्यांकन
विभाग के शीर्ष नेतृत्व की परफॉर्मेंस समीक्षा हो और निष्पक्ष जांच कराई जाए।
अगर यूपीसीडा को वास्तव में प्रदेश की औद्योगिक क्रांति का इंजन बनाना है, तो सबसे पहले अपने भीतर बैठे निष्क्रिय, नीति उल्लंघन करने वाले और भ्रष्ट अधिकारियों पर कार्रवाई करनी होगी। उद्योग लगाने आए निवेशकों के विश्वास की रक्षा, पारदर्शिता की बहाली और कर्तव्यनिष्ठ प्रशासन ही प्राधिकरण की साख और भविष्य तय करेगा।