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Gurugram News: बांग्ला भाषियों के साथ हो रहे पुलिसिया अत्याचार से बिगड़ी सफाई व्यवस्था, लोग पलायन को मजबूर

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दिल्ली। गुरुग्राम नगर निगम द्वारा डोर-टू-डोर कूड़ा उठाने की व्यवस्था बुरी तरह चरमरा गई है। इसके पीछे मुख्य वजह मानी जा रही है हाल ही में पुलिस द्वारा चलाया गया बांग्लादेशी नागरिकों की धर-पकड़ अभियान, जिससे कई सफाई कर्मचारी और वाहन चालक शहर छोड़ने पर मजबूर हो गए हैं।

नगर निगम ने सफाई व्यवस्था को सुदृढ़ करने के लिए एक नई एजेंसी को नियुक्त किया था, जिसका लक्ष्य चारों जोन में 400 गाड़ियों के माध्यम से कूड़ा उठाने का था। शुरुआती चरण में यह संख्या 200 तक पहुँची थी, लेकिन अब स्थिति यह है कि पिछले दो दिनों से महज 75 गाड़ियाँ ही सेवा दे रही हैं।

सफाई व्यवस्था पूरी तरह चरमराई
डोर-टू-डोर कूड़ा न उठने के कारण शहर के अधिकांश क्षेत्रों में कूड़े के ढेर लग गए हैं। ओल्ड रेलवे रोड, न्यू रेलवे रोड, पटौदी रोड, खांडसा रोड, शिवाजी नगर, शांति नगर, सेक्टर-22, 23, 4, 7, 9, 10, 46, अर्जुन नगर, भीम नगर जैसे इलाकों में गली-गली कूड़ा फैला है।

लोग अब मजबूरी में सड़कों के किनारे कूड़ा फेंक रहे हैं, जिससे ना केवल दुर्गंध फैली है बल्कि बीमारियों का खतरा भी तेजी से बढ़ गया है।

क्यों बढ़ी समस्या?
नगर निगम के सूत्रों के अनुसार, कूड़ा उठाने का जिम्मा जिन गाड़ियों पर था, उनमें से बड़ी संख्या में बांग्ला भाषी चालक और श्रमिक कार्यरत थे। पुलिस की सख्ती और बांग्लादेशी नागरिकों की पहचान के नाम पर हो रही छापेमारी से डर के माहौल में कई लोगों ने काम छोड़ दिया है या शहर से पलायन कर गए हैं।

एजेंसी और नगर निगम की सफाई
सफाई एजेंसी का कहना है कि गाड़ियों की खरीद प्रक्रिया जारी है और जल्दी ही सभी जोनों में नियमित सेवा बहाल कर दी जाएगी। नगर निगम के एक्सईएन सुंदर श्योराण ने बताया कि तीन जोनों के लिए टेंडर प्रक्रिया पूरी हो चुकी है और सोमवार तक वर्क ऑर्डर मिलने की उम्मीद है। जोन-4 के लिए भी सोमवार को टेंडर खोला जाएगा।

बांग्ला भाषियों में भय का माहौल
सूत्रों की मानें तो गुरुग्राम में सफाई कार्यों में बड़ी संख्या में बांग्ला भाषी श्रमिक कार्यरत हैं, जिनमें से कई बांग्लादेश से अवैध तरीके से आए लोगों के रूप में पहचाने जा रहे हैं। लेकिन स्थानीय नागरिक और मानवाधिकार कार्यकर्ता इसे एक पूरे समुदाय के खिलाफ पूर्वाग्रह मानते हैं।

“पुलिस को अपनी कार्रवाई करनी चाहिए, लेकिन यह सुनिश्चित किया जाए कि निर्दोष मजदूर डरे नहीं। शहर की सफाई और गरीब मजदूरों की रोज़ी-रोटी दोनों पर असर नहीं पड़ना चाहिए,” — एक सामाजिक कार्यकर्ता ने नाम न बताने की शर्त पर कहा।

 

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