गौतमबुद्ध नगर / नोएडा। नोएडा वेस्ट, जिसे कभी आधुनिक जीवनशैली का प्रतीक माना गया था, आज अपनी ही समस्याओं के बोझ तले कराह रहा है। यह सिर्फ एक जगह नहीं है, बल्कि उन हजारों परिवारों की कहानी है जिनकी गाढ़ी कमाई यहाँ एक घर खरीदने में लग गई, और अब वे हर दिन बुनियादी सुविधाओं के लिए संघर्ष कर रहे हैं। विकास का जो सपना दिखाया गया था, वह आज एक कड़वी हकीकत में बदल चुका है, जहाँ वादे और हकीकत के बीच एक लंबी खाई है।
रोज़मर्रा की चुनौतियाँ: एक अंतहीन लड़ाई
निवासियों के लिए यहाँ की मुश्किलें सिर्फ बड़ी-बड़ी बातें नहीं हैं, बल्कि रोजमर्रा की जिंदगी का हिस्सा हैं। हर दिन उन्हें नई चुनौती का सामना करना पड़ता है:
- अधूरी रजिस्ट्री और पजेशन: कई साल गुजर जाने के बाद भी हजारों फ्लैटों की रजिस्ट्री नहीं हुई है। बिल्डर पजेशन देने में देरी कर रहे हैं और कई बार अधूरे काम के साथ ही फ्लैट सौंप दिए जाते हैं। यह कानूनी और आर्थिक दोनों तरह से निवासियों के लिए एक बड़ा सिरदर्द है।
- लिफ्ट और पार्किंग की समस्या: लिफ्ट का खराब होना एक आम बात है। कई इमारतों में लिफ्ट अक्सर रुक जाती हैं, जिससे बुजुर्गों और बच्चों को काफी परेशानी होती है। इसके अलावा, पार्किंग की जगह सीमित है और अक्सर मनमाने शुल्क वसूले जाते हैं, जिससे आए दिन विवाद होते रहते हैं।
- मेंटेनेंस का अभाव: बिल्डर द्वारा रखरखाव के लिए ली जाने वाली भारी फीस के बावजूद, सोसाइटियों में साफ-सफाई, सुरक्षा और अन्य जरूरी सुविधाओं का अभाव है। निवासियों को अक्सर अपने दम पर इन समस्याओं से निपटना पड़ता है।
- बिल्डर-निवासी झड़पें: अपनी समस्याओं को लेकर जब निवासी बिल्डरों से बात करते हैं, तो अक्सर इसका कोई समाधान नहीं निकलता, बल्कि बहस और झड़पें होती हैं। बिल्डरों का अड़ियल रवैया और प्रशासन की निष्क्रियता इस तनाव को और बढ़ा देती है।
मेट्रो का अधूरा सपना: विश्वासघात का प्रतीक
नोएडा वेस्ट को दिल्ली-एनसीआर से जोड़ने वाली मेट्रो कनेक्टिविटी का वादा एक बड़ा चुनावी मुद्दा था। इस वादे ने लोगों को यहाँ घर खरीदने के लिए आकर्षित किया। लेकिन, आज भी मेट्रो का इंतजार खत्म नहीं हुआ है। यह सिर्फ एक अधूरी परियोजना नहीं है, बल्कि सरकार और प्राधिकरण पर लोगों के विश्वासघात का प्रतीक है। विकास के नाम पर दिखाए गए ये सपने आज निवासियों के मन में आक्रोश और निराशा पैदा कर रहे हैं।
सरकार की चुप्पी: आक्रोश की वजह
स्थानीय निवासियों का कहना है कि उन्होंने भाजपा को भारी बहुमत से सरकार में लाया, इस उम्मीद के साथ कि उनकी समस्याओं का समाधान होगा। लेकिन, सरकार और प्राधिकरण मूकदर्शक बने हुए हैं। उनके पास बिल्डरों पर कोई लगाम नहीं है और निवासियों की शिकायतों को नजरअंदाज किया जा रहा है। यही वजह है कि निवासियों में अब भारी आक्रोश है। उन्हें लगता है कि उनकी परेशानियों का कोई अंत नहीं है और उनकी आवाज को कोई सुनने वाला नहीं है।