राजेंद्र पाल गौतम – कांग्रेस को मिला अंबेडकरवादी योद्धा, महाबोधि महाविहार आंदोलन को नई दिशा
भारत के लोकतांत्रिक इतिहास में ऐसे क्षण बार-बार नहीं आते, जब कोई नेता महज़ राजनीति का हिस्सा न होकर, आंदोलन की आत्मा बन जाता है।
आज कांग्रेस पार्टी को ऐसा ही चेहरा मिला है – राजेंद्र पाल गौतम, पूर्व कैबिनेट मंत्री, दिल्ली।
एक अंबेडकरवादी बुद्धिजीवी दलित नेता, जिनकी आवाज़ देश की सीमाओं से परे गूंजती है।
उनके भीतर डॉ. भीमराव अंबेडकर की विचारधारा, बुद्ध के करुणा संदेश और संविधान की आत्मा का संगम दिखाई देता है।
नागपुर का इतिहास और आज की गूंज
नागपुर, जहां डॉ. अंबेडकर ने 1956 में लाखों अनुयायियों के साथ बौद्ध धर्म स्वीकार कर नया इतिहास रचा था, आज उसी धरती पर महाबोधि महाविहार मुक्ति आंदोलन की गूंज सुनाई दी।
बुद्धिस्ट समन्वय संघ द्वारा आयोजित इस विशाल जनसभा में हजारों की भीड़ ने यह घोषणा की कि –
जब तक महाबोधि महाविहार मुक्त नहीं होगा, यह आंदोलन रुकने वाला नहीं है।
📍 स्थान: कविवर्य सुरेश भट्ट सभागृह, रेशिम बाग, नागपुर
सभा में गूंजते नारे, लोगों के जोश और जनसमर्थन ने यह साबित कर दिया कि यह आंदोलन अब सिर्फ़ धार्मिक स्थल की आज़ादी तक सीमित नहीं है, बल्कि यह दलित–बहुजन समाज के आत्मसम्मान, पहचान और न्याय की लड़ाई बन चुका है।

महाबोधि महाविहार क्यों है संघर्ष का प्रतीक?
महाबोधि महाविहार, वह पवित्र स्थान है जहाँ स्वयं महात्मा बुद्ध ने ज्ञान प्राप्त किया।
लेकिन यह विडंबना है कि इस बौद्ध धरोहर पर बौद्धों का पूरा अधिकार अब तक स्थापित नहीं हो सका।
यह संघर्ष केवल एक धरोहर की मुक्ति का नहीं, बल्कि उन करोड़ों बौद्धों और दलितों के आस्था, सम्मान और हक़ का है, जो सदियों से हाशिए पर धकेले गए।
इस आंदोलन की पुकार है –
“धरोहर हमारी है, तो हक़ भी हमारा होना चाहिए।” राजेंद्र पाल गौतम – आंदोलन की नई ऊर्जा
राजेंद्र पाल गौतम ने इस आंदोलन में सिर्फ़ भागीदारी नहीं की, बल्कि इसे नए तेवर और नई ऊर्जा दी है।
उनकी आवाज़ में गूंजती है वह पीड़ा, जो सदियों से वंचित समाज झेलता आया है।
उनकी जुबान पर वह संकल्प है, जो अंबेडकर ने 1956 में लिया था – “अबला से सबल बनने का।”
उन्होंने साफ़ कहा –
➡️ “जब तक महाबोधि महाविहार मुक्त नहीं होगा, यह संघर्ष रुकेगा नहीं।” यह सिर्फ़ एक नारा नहीं, बल्कि एक एलान-ए-जंग है जो आज पूरे देश के दलित–बहुजन और बौद्ध समाज को एकजुट कर रहा है।

कांग्रेस के लिए नई रोशनी
कांग्रेस पार्टी लंबे समय से दलितों और बहुजनों के बीच अपने खोए हुए विश्वास को पुनः पाने की कोशिश कर रही थी।
ऐसे समय में राजेंद्र पाल गौतम जैसे अंबेडकरवादी योद्धा का शामिल होना कांग्रेस के लिए किसी वरदान से कम नहीं।
उनकी मौजूदगी पार्टी को यह ताक़त देती है कि –
• वह समानता, न्याय और भाईचारे के मुद्दों को मजबूती से उठा सके।
• दलित–बहुजन समाज के बीच कांग्रेस का विश्वास और भरोसा फिर से कायम हो।
• अंबेडकरवाद और कांग्रेस की समानधर्मी विचारधारा को एक नए धरातल पर मिलाया जा स
आंदोलन की असली ताक़त – जनता
नागपुर की जनसभा ने यह साफ़ कर दिया कि यह आंदोलन किसी एक नेता, संगठन या पार्टी का नहीं, बल्कि जनता की आत्मा का आंदोलन है।
हजारों की भीड़ ने यह साबित कर दिया कि बौद्ध और बहुजन समाज अब अपने अधिकारों को लेकर कभी समझौता नहीं करेगा।
यह वही आत्मबल है जो अंग्रेज़ों के खिलाफ़ स्वतंत्रता संग्राम में दिखाई दिया था।
आज वही ताक़त महाबोधि महाविहार की मुक्ति के लिए उमड़ रही है।
राजेंद्र पाल गौतम सिर्फ़ कांग्रेस के लिए एक नया नेता नहीं, बल्कि एक चिंगारी हैं जिसने पूरे आंदोलन को भड़का दिया है।
महाबोधि महाविहार मुक्ति आंदोलन केवल बौद्ध धरोहर की आज़ादी का संघर्ष नहीं, बल्कि यह भारत की आत्मा को उसके असली स्वरूप में स्थापित करने की लड़ाई है।
अंबेडकर की मशाल अब राजेंद्र पाल गौतम के हाथों में है। जब तक महाबोधि महाविहार मुक्त नहीं होगा, यह आंदोलन रुकेगा नहीं – और यही आवाज़ आने वाले भारत की तक़दीर लिखेगी।