Jagdeep Dhankhar resignation: उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ का इस्तीफा: कारण, सच्चाई और राजनीतिक पड़ताल
Jagdeep Dhankhar resignation: भारत के उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने जुलाई 2025 में अचानक अपने पद से इस्तीफा दे दिया। यह इस्तीफा ऐसे समय पर आया जब संसद का मानसून सत्र आरंभ होने वाला था, जिससे पूरे देश में राजनीतिक चर्चाओं का सिलसिला तेज़ हो गया। उन्होंने अपने इस्तीफे के पीछे स्वास्थ्य कारणों का हवाला दिया, लेकिन राजनीतिक गलियारों में यह सवाल भी उठने लगे कि क्या इसके पीछे कुछ और कारण छिपे हैं।
स्वास्थ्य कारण: सामने आया आधिकारिक पक्ष
Jagdeep Dhankhar resignation: जगदीप धनखड़ ने राष्ट्रपति को भेजे अपने इस्तीफे में लिखा कि वे डॉक्टरों की सलाह पर अपने स्वास्थ्य की देखभाल को प्राथमिकता देने के लिए इस्तीफा दे रहे हैं। उनका इस्तीफा भारतीय संविधान के अनुच्छेद 67(ए) के तहत स्वीकार किया गया। इससे पहले मार्च 2025 में उनकी हृदय संबंधी एक चिकित्सीय प्रक्रिया हुई थी, जिसके बाद वे कुछ समय अस्पताल में भर्ती भी रहे थे। इसके अलावा, उत्तराखंड के एक विश्वविद्यालय कार्यक्रम में अचानक उनकी तबीयत बिगड़ने की खबर भी आई थी।
इन घटनाओं को देखते हुए यह स्पष्ट किया गया कि उनकी तबीयत लंबे समय से ठीक नहीं थी और वे लगातार चिकित्सकीय देखरेख में थे। यही वजह सामने रखी गई कि उन्होंने स्वेच्छा से पद छोड़ने का निर्णय लिया।
विपक्ष और विश्लेषकों की प्रतिक्रिया
Jagdeep Dhankhar resignation: हालांकि आधिकारिक रूप से स्वास्थ्य को कारण बताया गया, परंतु विपक्ष और राजनीतिक विश्लेषकों ने इस कदम पर प्रश्नचिन्ह खड़े किए हैं। कई विपक्षी नेताओं ने कहा कि यह इस्तीफा केवल स्वास्थ्य कारणों से नहीं हो सकता, इसके पीछे सरकार और उपराष्ट्रपति के बीच चल रही वैचारिक असहमति और संस्थागत टकराव हो सकता है।
राज्यसभा की कार्यवाही, न्यायपालिका के साथ संबंधों और कुछ संवैधानिक विषयों पर उनकी टिप्पणियाँ सरकार की मुख्यधारा से अलग दिखती रही हैं। कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि न्यायिक नियुक्तियों और संसद संचालन के विषयों को लेकर उपराष्ट्रपति की राय और केंद्र सरकार के बीच मतभेद लगातार बढ़ रहे थे।
राजनीतिक घटनाक्रम और दबाव की अटकलें
धनखड़ का इस्तीफा उस समय आया जब राज्यसभा के भीतर एक न्यायाधीश के विरुद्ध महाभियोग जैसे प्रस्ताव की चर्चा हो रही थी। ऐसा माना जा रहा है कि इस संवेदनशील मुद्दे को लेकर उच्च पदों के बीच विवाद गहराता जा रहा था। इसके अलावा, धनखड़ द्वारा संसद की गरिमा और विधायिका की स्वतंत्रता पर दिए गए बयानों को लेकर भी सत्ता पक्ष में असहजता थी।
इस सबके बीच, कुछ राजनीतिक सूत्रों ने यह भी कहा कि उपराष्ट्रपति को कार्य निष्पादन में अपेक्षित स्वतंत्रता नहीं मिल पा रही थी, जिससे वे मानसिक रूप से भी दबाव में थे। हालांकि इसकी आधिकारिक पुष्टि नहीं की गई है, परंतु अचानक इस्तीफा इस दिशा में संकेत जरूर देता है।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि और तुलना
भारत के इतिहास में यह पहला मौका है जब किसी उपराष्ट्रपति ने स्वास्थ्य कारणों का हवाला देकर कार्यकाल के मध्य में इस्तीफा दिया है। इससे पूर्व उपराष्ट्रपतियों ने या तो राष्ट्रपति चुनाव लड़ने के लिए पद छोड़ा, या फिर कार्यकाल पूरा होने पर विदा ली। धनखड़ का इस्तीफा न केवल समय से पहले हुआ, बल्कि यह अप्रत्याशित भी था, जिससे इसकी गूंज राष्ट्रीय राजनीति में सुनाई दी।
इस्तीफे के बाद का परिदृश्य
धनखड़ के इस्तीफे के बाद राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश नारायण सिंह को कार्यवाहक सभापति बनाया गया है। निर्वाचन आयोग अब अगले छह महीने के भीतर नए उपराष्ट्रपति का चुनाव कराएगा। बीजेपी और उसके सहयोगी दल संभावित उम्मीदवारों के नाम पर विचार कर रहे हैं। इस बीच विपक्षी दल भी अपनी रणनीति बनाने में जुट गए हैं।
जगदीप धनखड़ का इस्तीफा भारतीय राजनीति में एक अहम मोड़ माना जा रहा है। भले ही इसे स्वास्थ्य कारणों से उठाया गया कदम बताया गया हो, परंतु इसके पीछे की वास्तविकता कहीं अधिक जटिल और राजनीतिक भी हो सकती है। लोकतांत्रिक संस्थाओं में संवाद, संतुलन और स्वतंत्रता का पालन आवश्यक है। यदि कोई पदाधिकारी केवल इसलिए पद छोड़ने को विवश होता है कि उसे अपेक्षित स्वतंत्रता नहीं मिल रही, तो यह चिंता का विषय होना चाहिए।
यह घटना एक बार फिर हमें सोचने पर मजबूर करती है कि क्या हमारे लोकतंत्र में संवैधानिक पदों पर बैठे लोगों को पूरी स्वतंत्रता से काम करने दिया जा रहा है, या फिर राजनीति अब संवैधानिक संतुलन पर भी भारी पड़ने लगी है।